Wednesday, 26 May 2021

कृतज्ञता

  कृतज्ञता

 


कृतज्ञता मानवता की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है। यह हमें आभास कराती है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष किसी भी रूप में और कभी भी यदि किसी व्यक्ति ने कोई सहयोग और सहायता प्रदान की है, तो उसके लिए यदि कुछ न कर सके, तो हृदय से आभार अवश्य प्रकट करें। वहीं कृतघ्नता इसके विपरीत एक आसुरी वृत्तिहै, जो इंसान को इंसानियत से जुदा करती है।

कृतज्ञता एक महान गुण है। कृतज्ञता का अर्थ है अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष सम्मान प्रदर्शन करना। हम अपने प्रति कभी भी और किसी भी रूप में की गई सहायता के लिए आभार प्रकट करते हैं और कहते हैं कि 'हम आप के प्रति कृतज्ञ हैं, ऋणी हैं और इसके बदले हमें जब भी कभी अवसर आएगा, अवश्य ही सेवा करेंगे।' कृतज्ञता मानवता की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है। यह हमें आभास कराती है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष किसी भी रूप में और कभी भी यदि किसी व्यक्ति ने कोई सहयोग और सहायता प्रदान की है, तो उसके लिए यदि कुछ न कर सके, तो हृदय से आभार अवश्य प्रकट करें। वहीं कृतघ्नता इसके विपरीत एक आसुरी वृत्तिहै, जो इंसान को इंसानियत से जुदा करती है।

कृतज्ञता दिव्य प्रकाश है। यह प्रकाश जहां होता है, वहां देवताओं का वास माना जाता है। कृतज्ञता दी हुई सहायता के प्रति आभार प्रकट करने का, श्रद्धा के अर्पण का भाव है। जो दिया है, हम उसके ऋणी हैं, इसकी अभिव्यक्ति ही कृतज्ञता है और अवसर आने पर उसे समुचित रूप से लौटा देना, इस गुण का मूलमंत्र है। इसी एक गुण के बल पर समाज और इंसान में एक सहज संबंध विकसित हो सकता है, भावना और संवेदना का जीवंत वातावरण निर्मित हो सकता है। कृतज्ञता एक पावन यज्ञ है। 'गीताकार' ने कहा है कि तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा देवताओं को उन्नत करो और देवता तुम लोगों को उन्नत करें। इस प्रकार नि:स्वार्थ भाव से एक दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे। गीता के इस श्लोक में कृतज्ञता का स्वरूप स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। जो दे, उससे लाभ लेकर उसको भी बदले में यथासंभव दें। यज्ञ से दैवीय शक्तियां प्रसन्न होती हैं और देवता यज्ञ करने वाले को समृद्ध कर देते हैं। कृतघ्न कभी संतुष्ट नहीं हो सकता और वह सुखी भी नहीं हो सकता है। वह सदा अपने प्रति दिए गए सहयोग को संशय की दृष्टि से देखता है और यह जताता है कि उसके प्रति कितना गलत किया गया है। वह सर्वाधिक बुरा उनका करता है, जो उसे सहयोग देने वाले होते हैं। इसकी परिणति होती है कि एक दिन उसके प्रति सभी लोग सहयोग करना बंद कर देते हैं।

वेदों में कृतज्ञता को मनुष्य का आभूषण कहा गया है। यह ऐसा गहना है जिसे धारण करने से अपना तो भला होता ही है, समाज को भी प्रेरणा मिलती है। अकृतज्ञ व्यक्ित को न परिवार चाहता है और न ही समाज में उसका आदर-सम्मान होता है। वहीं पर देव और महादेव भी कृतज्ञ व्यक्ित पर प्रसन्न होते हैं। संसार में हमार प्रति यदि थोड़ी सी भी कोई सहानुभूति प्रदर्शित करता है तो हमें उसके प्रति चौगुने भाव से कृतज्ञता दिखानी चाहिए। समाज में उसी का यश अमर होता है, जो सबके प्रति कृतज्ञ और संवेदनशील होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार संवेदनशीलता और कृतज्ञता दोनों इंसान को निरोगता और तनाव मुक्तता की ओर ले जाते हैं। जो कृतज्ञ नहीं, वह धर्म का अनुगामी कभी नहीं हो सकता है। कृतघ्न व्यक्ित को न भगवान की अनुकम्पा प्राप्त होती है और न ही धर्मराज का वरदान ही प्राप्त होता है। तुलसीदास महाराज ने कृतज्ञता को धर्म रूपी रथ का एक पहिया कहा है। जो इस पर सवार हो जाता है वह भगवान राम की अनुकम्पा हासिल करने का अधिकारी बन जाता है। जिस तरह से भक्त भगवान की कृपा के प्रति कृतज्ञ होकर उसका गुणगान करता है, उसी तरह का भाव संसार के संबंधों में भी हो जाए तो समाज स्वर्ग बन जाए। दूसर के प्रति कृतज्ञता न होने की वजह अहंकार और दूषित संस्कार होते हैं। यदि अहंकार और गंदे संस्कारों से ऊपर उठकर हम कार्य और व्यवहार करना सीख जाएं तो कृतज्ञता की सुगंध खुद-ब-खुद चारों तरफ फैलने लगेगी। शास्त्रों में कृतज्ञता चारों वर्णो का आभूषण माना गया है। विनीत भाव से निरंतर दूसर के प्रति नतमस्तक रहें और हर समय परोपकारी के सदगुणों का बखान करते रहें- शास्त्र में यह तप कहा गया है। तप केवल भगवान का स्मरण, उपवास या जप नहीं है, बल्कि पवित्र भाव से सदगुणों का बखान करना भी तप है। धर्म के हम अनुगामी हैं कि नहीं, यह हमार स्वभाव, गुण और कर्म से मालूम होता है।

कृतज्ञता मनुष्य जीवन की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है।

ईश्वर ने हमें बनाया, ये श्वासें दी तो सर्वप्रथम हम उस ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हैं|

यदि जीवन में हम अपने प्रति किसी भी रूप में की गई सहायता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं तो हमारा यह जीवन पूर्ण है।

ईश्वर के बाद हमें अपने माता-पिता के प्रति भी कृतज्ञ होना चाहिए। जिनकी कृपा से हमें यह जीवन मिला है| हमें अपने गुरु के प्रति भी कृतज्ञ होना चाहिए जिनकी कृपा से हमने जीवन जीना सिखा। इसी तरह हमें अपने जीवन के भागीदार प्रत्येक व्यक्ति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।

कृतज्ञता इस दुनिया का सबसे महान गुण है। कृतज्ञता हमें यह एहसास दिलाती है की अपने जीवन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसी न किसी के द्वारा हमारी जो सहायता की गई है हम अगर बदले में उसको कुछ ना दे सके तो कोई बात नहीं परंतु उसको हृदय से आभार जरूर प्रकट करना चाहिए।

कृतज्ञता क्या है ?

कृतज्ञता का आशय है कि अपने प्रति की हुई हर उत्कृष्ट सहायता के लिए शुक्रगुजार होना। और सहायता या उपकार करने वाले व्यक्ति को धन्यवाद बोल कर उसके प्रति सम्मान प्रकट करना।

कृतज्ञता एक दिव्य प्रकाश है जिस मनुष्य के हृदय में कृतज्ञता का प्रकाश होता है वह दूसरों के प्रति आभार प्रकट करना जानता है| उस व्यक्ति के आसपास सदैव दैवीय शक्ति का वास होता है ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में हर खुशी व सफलता को प्राप्त करता है।

कृतज्ञता एक पवित्र यज्ञ की तरह होता है जो अपनी अग्नि( तेज ) में आसपास की हवा व मनुष्य को शुद्ध करता हैं|

गीता मे भी कहा गया है कि कृतज्ञता रूपी यज्ञ से तुम देवताओं को उन्नत करो और देवता तुम्हें उन्नत करेंगे। और इसी तरह निस्वार्थ भाव से एक दूसरे को उन्नत करते हुए अंत में परम कल्याण को प्राप्त करोगे।

जो व्यक्ति धन्यवाद पूर्ण ईश्वर की स्तुति करता है वह अपने जीवन में सफलता व खुशियां प्राप्त करता है।

कृतज्ञता का रहस्य

जब हम सुबह सोकर उठते हैं तो सर्वप्रथम अपना पांव धरती पर रखते ही उस ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए जिनकी कृपा से ही हमें एक और नया दिन जीने के लिए मिला है।

प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की कृपा का ऋणी होना चाहिए जिन की कृपा से ही रोटी- कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही है।

इसी तरह हमें अपने जीवन में घटने वाली हर छोटी से छोटी घटना जो हमको खुशी देती है के प्रति आभार प्रकट करना चाहिए| अगर आभार प्रकट करने की आदत को हम अपनी जीवनशैली बना ले तो हम देखेंगे कि धीरे-धीरे जीवन में जैसा हम चाहते हैं वैसा ही होने लगता है और यह सब हमारा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होने का असर है।

ईश्वर ने हमें एक पूर्ण शरीर दिया है तो यह उनकी हमारे ऊपर सबसे बड़ी कृपा है। रंग या रूप से नहीं बल्कि मन की सुंदरता से ही व्यक्ति अन्य व्यक्ति के प्रति दया व मदद की भावना रखता है। जो व्यक्ति जीवन की हर सांस के लिए ईश्वर को धन्यवाद देता है और यह मानता है कि जो हुआ वह अच्छे के लिए हुआ है तो यकीन मानिए ऐसा व्यक्ति दुनिया का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति है क्योंकि वह अपने जीवन में ईश्वर की कृपा को समझ गया है।

इसलिए अगर जीवन में हर परिस्थिति में हम ईश्वर को धन्यवाद करना सीख जाए तो हमें उनकी कृपा का एहसास भी हो जाएगा। और धीरे-धीरे जीवन की प्रत्येक घटना हमारी इच्छा के अनुसार होने लगती है| यह ईश्वर के प्रति हमारा कृतज्ञता प्रकट करने का ही नतीजा है और ऐसे ही ईश्वर की कृपा से जीवन में अनगिनत सुखमय घटनाएं घटने लगती है।

कृतज्ञता को कुछ ही शब्दों में समेटकर नहीं लिखा जा सकता है यह तो अपने आप में पूरा ब्रह्मांड है. जो व्यक्ति अपने जीवन में कृतज्ञता रूपी कवच को धारण कर लेता है तो उसके चारों तरफ ईश्वरी शक्ति का वास होता है और वह उस मनुष्य को और अधिक सशक्त बनाती है और इससे मिलने वाली खुशी व सफलता निरंतर बनी रहती है|

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