10 तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई…
दोस्तों, क्या अपने महान कहानीकार चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की ‘उसने कहा था’ कहानी पढ़ी है? यह कहानी एक बहुत ही मार्मिक कहानी है और इसकी मूल संवेदना यह है कि संसार में कुछ ऐसे महान निःस्वार्थी लोग होते हैं, जो किसी के कहे को पूरा करने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे देते हैं। इस कहानी का मुख्य पात्र लहना सिंह ऐसा ही एक व्यक्ति है, जो अपने प्राण देकर बोधा सिंह और हजारा सिंह के प्राणों की रक्षा करता है, केवल इसलिए की लहना सिंह ने सूबेदारनी के मंत्र, उसने कहा था वाक्य को ध्यान में रखकर अपने प्राणों का बलिदान भी देता है।‘रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई’ कुछ ऐसा ही उद्देश्य है इस कहानी का। मुख्य पात्र लहना सिंह हमारे हृदय पटल पर हमेशा के लिए अंकित हो जाता है। वह प्रेम, त्याग, बलिदानम विनोद वृत्ति, बुद्धिमत्ता और सतर्कता आदि विविध गुणों का स्वामी है। ‘अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के लिए मरते हैं, ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं, लेकिन होते वश्य हैं।‘
ऐसा कोई कैसे सोच सकता है? ऐसा कोई तभी सोच सकता है जब हमें महसूस हो कि आपसे में जन्म-जन्मांतर का प्रगाढ़ रिश्ता है, कुछ जाना-सा, कुछ अनजाना-सा.....”
अक्सर लोगों को कहते सुना है कि फलां-फलां व्यक्ति से उसका कोई पुराना रिश्ता है, पुराना नाता है, पिछले जनम का, या जन्म जन्मांतर का वरना यूं ही, कोई कैसे दिल को लुभाने लगता है। चंद हसीन मुलाकातों में रिश्ता इतना गहरा हो गया कि लगने लगा जैसे सदियों से एक-दूसरे को जानते हों। मज़े की बात तो यह है कि कुछ ही दिनों में ये जन्मों के रिश्ते अदालत के भंवर में दिखते है। एक दूजे के प्रति ज़हर उगलते नजर आते हैं। महान शायर कैफ़ी आज़मी ने पूछा था कि “कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता, है जनम का जो ये रिश्ता, तो बदलता क्यों है?“
पिछले दिनों एक मित्र ने बताया कि उनकी ज़िंदगी में एक नया-नया रिश्ता बना है, लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे सदियों से वे एकदूजे को जानते हों। पहली मुलाक़ात में रूह का नाता हो गया आपस में... क्या यह संभव है? लोग तर्क देते हैं कि इतनी बड़ी दुनिया में कोई एक चेहरा ही हमें क्यों लुभाता है? ज़रुर उससे हमारा कोई पुराना नाता है। वरना कोई एक ही खास क्यों लगता है? क्या है उस चेहरे में ऐसा, जो किसी और में नहीं दिखता। कोई किसी की मुस्कान को अतुलनीय मुस्कान कहता है, कोई किसी के अंदाज पर फ़िदा है, कोई किसी की आंखों की गहराई में खो गया है, तो कोई किसी के गोरे रंग या सुंदर देह का दीवाना हो गयाहै, किसी को किसी की हंसी में सिक्कों की खनखनाहट सुनाई देती है, कोई किसी की आवाज़ से गुनगुनाहट सुनाई देती है, तो कोई किसी की खुशबू में मदहोश हुआ जाता है... इस ख़ास किस्म की पसंद के पीछे आखिर प्रक्रिया क्या है? यानी किसी को कोई क्यों लुभाता है? और क्या इस आकर्षण को रूह का संबंध या कोई रहस्य, कोई जादू या कोई अदृश्य प्रेरणा है, कौन जाने?
हां, यह भी सच है कि हम कुछ ख़ास आवाज़ों, चेहरों और रंगों इत्यादि के प्रति आकर्षित होते हैं। लेकिन फिर वही बात कि सौ सुंदर व्यक्तियों के बीच कोई एक ही प्रेमपात्र क्यों बन जाता है? क्यों दुनिया की भीड़ में कोई एक चेहरा ही हमें लुभाता है? क्या कारण, क्या वजह हो सकती है, यानी सौ व्यक्तियों को अपने सामने खड़ा करके किसी एक का चुनाव किया जाए, तो सवाल उठता है की वही क्यों? इस के पीछे का क्या रहस्य है?
इस के पीछे चुनने वाले के सौंदर्यबोध के अपने मानदंड और अंतर-संबंधों के बारे में उसकी मान्यताएँ जाने-अनजाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सुंदरता के अपने-अपने मानदंड बन जाते हैं और वह व्यक्ति उन्हीं से मिलते जुलते रूप को ही पसंद करता है। किसी को मधुबाला लुभाती है, तो किसी को मीनाकुमारी। कोई केटरीना की सुंदरता देख मुग्ध होता है तो किसी को आलिया भट्ट रोमांचित करती है। यही वजह है कि किसी को किसी की मुस्कान लुभाती है, किसी को किसी का चेहरा, उसके अंगों की एक ख़ास बनावट आकर्षित करती है, तो किसी को किसी का सेन्स ऑफ़ हयूमर, कई पुरुष या महिलाएँ गोरे रंग के प्रति आकर्षित होते हैं, तो कुछ सांवले रंग के प्रति, या सुंदर देह के प्रति, तो कोई किसी में बुद्धि, विवेक और चतुराई खोजता है।
यानी कि उसका चुनाव इन्हीं बातों पर निर्भर होता है, ना कि एकदम सांयोगिक और किसी दैवीय या रहस्यमयी प्रेरणा पर। अक्सर लोग इस आकर्षण को रूह का नाता, पिछले जनम का संबंध या कोई रहस्य मान बैठते हैं। शुरूआती आकर्षण और चुनाव में शारीरिक गुणों की महती भूमिका होती है, पर असली परीक्षा तो आपसी अंतःक्रियाओं यानी व्यक्तित्व के आंतरिक व्यावहारिक गुणों के परीक्षण में होती है। यह सच भी है दोस्तों, जब हमारे संबंध बनते हैं विशेष तौर पर स्त्री और पुरुष के बीच के संबंधों में, आरंभ में शायद कहीं दैहिक आकर्षण होता हो, क्योंकि बाहरी आवरण से ही आप अंतस तक पहुंच पाते हैं, परंतु रिश्ता वही कायम रहता है, जो शारीरिक और दैहिक सुंदरता से होता हुआ मन की सुंदरता को खोज लेता है। ठीक वैसे ही जैसे प्यासा हिरण मरुभूमि में भी जलाशय ढूंढ ही लेता है, प्यासी धरती की पुकार पर मेघ बरस ही पड़ते है और सारे बंधंनों को तोड़ते हुए एक झरना सागर में मिल ही जाता है। जब रिश्ते कुछ दूर तक चल पड़ते हैं, तो उन रिश्तो में आपसी समझ, व्यवहार का संतुलन और बिना कहे एक दूसरे को समझ लेने की प्रवृत्ति पैदा होने लगती है। और यहीं हम कह पाते हैं कि तेरा मुझे है पहले का नाता कोई।
सार ये है कि कोई चेहरा आपको लुभा रहा है, पसंद आ रहा है। आप किसी व्यक्ति विशेष के आकर्षण में बंधे जा रहे हैं,, तो आप इसे कोई नशा या जादू समझने की भूल ना कर बैठें। किसी का मिलना, आपके ज़िंदगी में उसका आना और छा जाना, आपको विचलित कर देना, ये महज़ कुछ चीज़ों पर संयोग मात्र निर्भर हो सकता है। आप को कोई यूं ही नहीं लुभा रहा। उस लुभाने के पीछे कोई सदियों का नाता नहीं;,ना कोई रहस्मयी प्रेरणा, ना कोई पूर्व जनम का कोई संबंध ही है। बल्कि, इसके पीछे आपके सौन्दर्यबोध के मानदंड, आपकी अंतर्संबंधों के बारे में मान्यता और कुछ जैव रसायन काम कर रहे होते हैं।
हमें निरपेक्ष भाव से इसे देखना होगा और देखते वक्त इसकी गहराई में जाना होगा, बजाए इसके कि हम इसे जादू, पूर्व नियत संयोग या कोई पुराना नाता समझे। इसलिए अब अगर कोई आपको लुभाए, तो सौ बार सोचें कि यूं ही नहीं लुभाता कोई! और न ही तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई!... है न दोस्तों!
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