Thursday, 24 July 2025

फिर बहा दो, एक गंगा

 

ढलने दो, उम्र की धूप सारी

ले जाओ बेबसी और, लाचारी ।

दो नया इतिहास जग को,

तुम सजाओ, फिर से क्यारी ।

छोड़ दो, बेकार बंधन,

जिनसे न,बनता कोई जीवन ।

तुम उठो, दुनिया उठाओ,

फिर खिला दो, एक गुलशन ।

जीत लो, विश्वास अपना,

नहीं बंदी हैं, हम किसी के ।

स्वतंत्र है, जहां में अपने,

चूम लो, हर क्षण, हर पल ।

जो ना रीते, जो ना बीते,

छेड़ दो इक, ऐसा राग ।

सान कर दुनिया के दुख को,

बांध लो इक, मीठी तान ।

छोड़कर, बंधन सुनहरे,

सत्य से, पहचान कर लो ।

सह लो, दुनिया के दुख को,

यूं मुस्कराते, गुनगुनाते ।

गुनगुनाना ही पावन है,

मुस्कराना ही सृजन है ।

फिर बना दो, एक उपवन,

फिर बसा दो, एक आंगन ।

छोड़कर स्वार्थ सारे,

तुम भुला दो, भेद सारे ।

फिर मिटा लो, भेद सारे,

फिर नहा लो, इस सागर में ।

आकाश गंगा, करती है स्वागत,

दो नया विश्वास विश्व को ।

फिर बहा दो, एक गंगा,

फिर बहा दो, एक गंगा । 

No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...