ढलने दो, उम्र की धूप सारी
ले जाओ बेबसी और, लाचारी ।
दो नया इतिहास जग को,
तुम सजाओ, फिर से क्यारी ।
छोड़ दो, बेकार बंधन,
जिनसे न,बनता कोई जीवन ।
तुम उठो, दुनिया उठाओ,
फिर खिला दो, एक गुलशन ।
जीत लो, विश्वास अपना,
नहीं बंदी हैं, हम किसी के ।
स्वतंत्र है, जहां में अपने,
चूम लो, हर क्षण, हर पल ।
जो ना रीते, जो ना बीते,
छेड़ दो इक, ऐसा राग ।
सान कर दुनिया के दुख को,
बांध लो इक, मीठी तान ।
छोड़कर, बंधन सुनहरे,
सत्य से, पहचान कर लो ।
सह लो, दुनिया के दुख को,
यूं मुस्कराते, गुनगुनाते ।
गुनगुनाना ही पावन है,
मुस्कराना ही सृजन है ।
फिर बना दो, एक उपवन,
फिर बसा दो, एक आंगन ।
छोड़कर स्वार्थ सारे,
तुम भुला दो, भेद सारे ।
फिर मिटा लो, भेद सारे,
फिर नहा लो, इस सागर में ।
आकाश गंगा, करती है स्वागत,
दो नया विश्वास विश्व को ।
फिर बहा दो, एक गंगा,
फिर बहा दो, एक गंगा ।
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