EPISODE-3
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
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नमस्कार दोस्तों! मैं मीता गुप्ता, एक आवाज़, एक दोस्त, एक किस्से-कहानियां सुनाने वाली आपकी मीत | लीजिए हाज़िर हैं, नए जज़्बात, नए किस्से, और कुछ पुरानी यादें, उसी मखमली आवाज़ के
साथ...आज हम बात करने जा रहे हैं, ‘प्रेम दिवस’ यानी
‘वैलेंस्टाइंस डे’ की| अभी-अभी तो मनाया है हमने, प्रेम का
यह दिवस, प्रेम का एक ही दिवस? खैर ‘वैलेंस्टाइंस
डे’ के मौके पर बाज़ार गिफ़्ट्स, बहुत से सुर्ख गुलाबों और
ग्रीटिंग कार्ड्स से अटे रहते हैं, बाज़ारीकरण, उदारवाद और ग्लोबलाइज़ेशन का सही रूप-स्वरूप इन मौकों पर ही तो उजागर होते
हैं। मैंने सोचा, चलो, बाज़ार की रौनक
देखी जाए, कुछ अपने वैलंटाइन के लिए भी गिफ़्ट ले लिया जाए।
बदलते दौर में उम्र या अवस्था थोड़े ही मायने रखती है? सो
आर्चीज़ गैलरी पहुँची, वास्तव में गिफ्ट्स की सुंदरता,
उन पर लिखे संदेशों ने मन मोह लिया। रंग-बिरंगे, बड़े ही क्रिएटिव गिफ्ट्स वहाँ दिखाई दिए। अभी गिफ्ट्स की सुंदरता को निहार
ही रही थी कि एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी, भैया, ये सारे कार्ड्स और गिफ़्ट्स पैक कर दीजिए अलग-अलग! उस लड़की के साथ एक और
लड़की थी, जो उसके कानों में कुछ फुसफुसाई......दोनों ठहाका
मार कर हँसने लगीं....!!!
मैं सोचने लगी.....कितने वैलंटाइन होंगे? ‘वैलनटाइंस डे’ क्या सचमुच ‘प्रेम दिवस’ को कहते हैं? क्या प्यार प्यार रह गया है? या व्यापार बन कर रह
गया है? क्या फिर मौज-मस्ती को प्यार का नाम दिया जा रहा है?
प्यार तो एब्सट्रैक्ट होता है, सूक्ष्म होता
है दोस्तों! प्रेम कोई भावना नहीं होती, प्रेम तो आपका
अस्तित्व होता है। व्यक्त्तित्व बदलता है, शरीर, मन और व्यवहार बदलते रहते हैं, किंतु हर
व्यक्त्तित्व से परे जो अपरिवर्तनशील है, जो कभी नहीं बदलता,
वही प्रेम है, वही तो प्यार है! शायर की मानें, तो वह दिल को दुखाने के लिए ही सही, फिर से उसे छोड़
के जाने के लिए ही सही, अपने प्रेमी को पुकारता है, क्योंकि उसका मानना है कि प्रेम, मुहब्बत की होश
वालों को ख़बर होती ही नहीं है, वे तो जानते ही नहीं कि
बे-ख़ुदी किसे कहते हैं, क्योंकि इसे तो केवल वही समझ सकता
है, जिसने कभी इश्क़ किया हो, प्रेम का
अनुभव किया हो।
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दोस्तों! प्यार, मुहब्बत या प्रेम एक एहसास है,
जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। यह एक मज़बूत आकर्षण और निजी
जुड़ाव है, जो सब कुछ भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करता
है, जिससे आप प्रेम करते हैं। सच्चा प्यार वह होता है,
जो सभी हालातो में आप के साथ हो, यानी आपके
दुख को अपना दुख और आप की खुशियों को अपनी खुशियां माने। कहते हैं कि अगर प्यार
होता है, तो हमारी ज़िंदगी बदल जाती है। पर ज़िंदगी बदलती है
या नहीं, यह इंसान के पर निर्भर करता है। पर प्यार इंसान को
ज़रूर बदल देता है। प्यार का मतलब सिर्फ़ यह नहीं है कि हम हमेशा उसके साथ रहे,
प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होता, दूर कितने भी हो, अहसास हमेशा पास का होता है।
प्यार को अक्सर वासना के साथ जोड़कर देखा जाता है। भला ऐसा प्यार भी
कैसा प्यार है, जिसमें केवल भौतिक देह का ही महत्व हो? भगवान कृष्ण और राधा के बीच भी तो प्रेम का रिश्ता था, पर यह शारीरिक नहीं था, बल्कि भक्ति का एक विशुद्ध
रूप था, निःस्वार्थ प्रेम था, आत्मिक
प्रेम था। प्रेम व्यक्ति के जीवन की पराकाष्ठा होती है, जो
समर्पण भाव की अंतरिम घटना है, जबकि वासना व्यक्ति के खोखले जीवन में
पूर्ति-पिपासा की तृप्ति की घटना है, जो आजकल के तथाकथित
प्यार में निहित है। वासना के सतह पर उलझा मनुष्य प्रेम की नहीं, देह की माँग करता है। वासना से भरा पुरुष हमेशा स्त्री को पूज्या नहीं
भोग्या ही समझता है।
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चलिए दोस्तों! अब बात करते हैं उस उदात्त प्रेम की..जिसके लिए अनेक
फ़कीरों ने, भक्तों ने तड़प-तड़प के प्राण त्याग दिए....वे अपने रब
को, खुदा को मैदानों में, रेगिस्तानों
में, पर्वतों पर, दरिया में ढूँढते-ढूँढते
अपना जीवन ही गवाँ बैठे....पर मर कर भी अमर हो गए...उनका नाम फ़िज़ाओं में घुल गया
हमेशा के लिए...खुशबू बन कर बस गया फूलों में सदा के लिए…रंग बन कर समा गया है
इंद्रधनुष के रंगों में......क्षितिज के उस पार से झांक कर मुस्कराता है
वह....सांसारिक प्रेम सागर के जैसा है, परंतु सागर की भी
सीमा होती है। दिव्य प्रेम आकाश के जैसा है, जिसकी कोई सीमा नहीं होती। उस चांद को
जानें, उसे समझें, जिसकी चाह में चातक
पक्षी जान दिए रहता है......टकटकी बांधे....निःस्वार्थ भाव से...मगन होकर !!
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पिछले दिनों सूरज बड़जात्या की फिल्म "विवाह" देखी। वाह!
क्या फिल्म है? यह एक पारिवारिक प्रेम कहानी है और एक पारंपरिक
भारतीय विवाह के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है, जिसमें कई
महत्वपूर्ण संदेश छिपे हुए हैं। कहानी एक छोटे शहर की लड़की पूनम और प्रेम की है,
जो एक बड़े उद्योगपति का बेटा है। पूनम और प्रेम पहली ही मुलाकात
में एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं। उनके परिवारों की सहमति से उनका रिश्ता
तय हो जाता है। विवाह की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। विवाह से ठीक पहले, एक दुर्घटना में पूनम का चेहरा और हाथ बुरी तरह जल जाते हैं। परिवार और
समाज के दबाव के बावजूद, प्रेम पूनम का साथ नहीं छोड़ता और
अपने प्यार और वचन को निभाने का फैसला करता है। प्रेम का यह निर्णय सच्चे प्रेम और
समर्पण का प्रतीक बन जाता है, वह पारिवारिक मूल्यों और
संस्कारों को उच्चतम महत्व देता है, वह पूनम की आँतरिक
सुंदरता से प्रेम करता है, न कि उसके बाहरी रूप से।
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जी दोस्तों, हमने बात शुरू की थी "प्रेम-दिवस" से.... ‘वैलेंस्टाइंस
डे’ से, पर प्रेम के लिए एक़ ही दिन क्यों? जैसे ही ऐसा सोचा,
वैसे ही बादल का एक टुकड़ा चुपके से धरती को भिगो गया और मैं....
मैं मिट्टी में मिल कर महकने लगी। जिस पल कली, फूल बन रही थी,
कोई उसमें रंग और खुशबू भर
रहा था, उस पल मैं ही तो सांस ले रही थी, जब गुलाब धीरे धीरे सुर्ख हो रहे थे और दिल धड़कना सीख रहा था, उस पल से मैं साथ हूँ सबके, क्योंकि मैं ही तो प्रेम हूँ। इतनी बड़ी
दुनिया में हज़ारों चेहरों के बीच कोई एक चेहरा जब तुम्हे भाने लगे, जिसके ख्याल से तुम्हारा दिल धड़कने लगे, जिसकी हर
बात तुम्हें तुमसे जुदा करने लगे, जिसके लिए तुम्हारे मन में
अहसासों का कलश भरने लगे और ये अहसास आँखों के रास्ते छलकने लगें, आसूँ गालों पे आ-आकर ढलकने लगें, कोई तस्वीर दिल में
खिंचने लगे, जिसे तुम जितना भुलाओ और वो उतना ही करीब महसूस
होने लगे, हवाओं में उसके होने की खुशबू आने लगे, आँखों में नमी रहने लगे, मन की दहलीज़ पे आहट होने
लगे, होंठ चुप हो जाएँ, मगर आखें बोलने
लगे, कोई सर्दी में धूप-सा और गर्मी में शाम-सा लगने लगे,
बिन बरसात हम भीगने लगें- उस पल समझ लेना तुम्हें किसी से मोहब्बत
हो गई है।
है न दोस्तों!.....
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कोई एक दिन नहीं होता प्यार का... ना एक साल... ना एक जनम...और तो और
मौत पर भी यह कहानी ख़त्म नहीं होती। यह सदियों से है और सदियों तक रहेगा। हाँ...
लेकिन जब हम इसे छू कर देखना चाहते हैं, अपनी मुठ्ठी में इसे
कैद कर लेना चाहते हैं, तब यह चुपचाप उड़ जाता है, है न अजीब-सी शय है, आज तक इसका रहस्य कोई नहीं जान
पाया। लेकिन यह जानता है कि कौन-सा हिस्सा किस का है, कौन-सा
टुकड़ा कहाँ जोड़ा जाएगा, किस बंद दरवाज़े पे दस्तक देनी है
और किस मकान से चुपचाप निकल जाना है। ये सारी कायनात प्यार के दम से चलती है,
किस को किसके लिए ज़मीं पे बुलाया गया है, इसके
लिए देश, सीमा, काल सरहदें, उमर, कुछ भी मायने नहीं रखती। यह सागर को रेगिस्तान
में बदल कर रेत के कणों में मुस्काता है, रेगिस्तानों में
मरूद्यान खिलाता है...और....और...बदले में कुछ नहीं माँगता, यह
रुकता नहीं कहीं...ठहरता भी नहीं कभी।
प्यार पत्तियों में हरापन बन कर और हमारी देह में लहू बन कर बहता है, इसे डालियों से तोड़े गए गुलाबों में, ग्रीटिंग
कार्डों या मंहगे तोहफ़ों में मत खोजना, सिर्फ़ महसूस करना
आँखें बंद करके। जिस पल कोई तुमसे से होकर गुज़रने लगे, तुम
उसे सोचो और वो झट से पास आ बैठे, चाहे ख्यालों में ही सही,
उसका ना होना भी होना लगे, भरी दुनिया में कोई
तुम्हें तन्हा करने लगे, उस पल समझ लेना, तुम्हें मोहब्बत हो
गई है, प्यार हो गया है। फिर प्यार तो प्यार है, इसे हम कोई नाम दें, ऐसा ज़रूरी तो नहीं….. यह तो
प्यार है, बस प्यार है...बस प्यार है....!! यही तो शाश्वत है, यही तो चिरस्थाई है, है न दोस्तों!
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ये प्यार की बातें हैं दोस्तों! यूँ ही ख़त्म करने का मन नहीं करता,
पर.....हाँ, आपके प्यार के किस्से सुनाने हैं मुझे! अपने प्रेम की कहानी मैसेज बॉक्स में लिखाकर भेजिएगा ज़रूर, मुझे इंतज़ार रहेगा.....और आप भी तो इंतजार करेंगे न ....अगले एपिसोड
का...करेंगे न दोस्तों!
सुनिएगा ज़रूर… हो सकता है, मेरे प्यार की कहानी
में आपके भी किस्से छिपे हों.....! मेरे चैनल को सब्सक्राइब कीजिए...मुझे
सुनिए....औरों को सुनाइए....मिलती हूँ आपसे अगले एपिसोड के साथ...
नमस्कार दोस्तों!....वही प्रीत...वही किस्से-कहानियाँ लिए.....आपकी मीत.... मैं,
मीता गुप्ता...
END MUSIC
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