12 लब हिलें तो, मोगरे के फूल खिलते हैं कहीं....
दोस्तो! ये पंक्तियाँ प्रेम और स्नेह से भरी हुई हैं, जो यह व्यक्त करती हैं कि प्रिय व्यक्ति की बातें, उनकी मुस्कान और उनकी भावनाएँ कैसे एक खूबसूरत दुनिया की सृष्टि करती हैं। यह एक तरह का इज़हार है कि उनके बिना सब कुछ अधूरा है और उसके होने से ही जीवन में रंग और खुशियाँ हैं क्योंकि उसके लब हिलते हैं, तो फूल खिलने लगते हैं, ग़म में भी चाँद निकल आता है, उसकी हँसी में सवेरा होता है, उसकी आँखों में ही सारा जहाँ मिल जाता है, उसकी हँसी से बहारें मिल जाती हैं, उसके हर लफ्ज़ में मिठास है, उसके हर ख्याल में उजास है, उसकी ख़ुशबू से सारी महफिल महक जाती है, उसकी खिलखिलाहट सारे माहौल में मिठास और खुशबू भर देती है और जिसके आने पर वातावरण सुगंधित और खूबसूरत हो जाता है। सोचने लगी कि आखिर यह है कौन?
पिछले दिनों किसी काम से एक ऑफिस में जाना हुआ। जिससे मिलना था, वो एक महिला अधिकारी थी। जैसे ही मेंरी बारी आई, मैं उनसे मिलने गई, देखा तो वो मेंरे कालेज की सहेली निकली। मिलते ही हम दोनों ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगीं। आवाज़ सुनकर कमरों में से कर्मचारी निकल कर आए। लगा कि कुछ गलत हो गया। मेंरी सहेली एकदम से चुप हो गई मानो कोई अपराध करते पकड़ी गई हो। बोली, सब सुन रहे हैं। देखो कमरों से बाहर आ गए, बीस साल की नौकरी में मेंरी आवाज़ आज तक किसी ने नहीं सुनी थी। मैं बोली, “कब्र बना रखा है ऑफिस को?” आज सभी मुर्दे कब्रों से बाहर निकल आए, इस बात पे पूरा ऑफिस ठहाका मारकर हंस पड़ा।
मेंरी दोस्त की आखों में आसूं थे बोली, “ अपनी ही खनकती हंसी बहुत दिनों बाद सुन सकी हूं मैं। एक हंसी जिसमें रहती थी खनखनाहट, वो सिर्फ हंसी नहीं थी, थी एहसास की खनक सी, कई दिनों से कहीं गुम और चुप सी थी वो, दबी हुई थी वो खनक न जाने किन दिशाओं में, आज तुम्हारे आने से मुस्कराहटों के साथ उभरी है फिर उन लबों पे।“ वह आगे बोली, “माँ के यहाँ जो हंसी छूट गई थी, वो बरसों बाद आज आई। इससे पहले कब हंसी थी याद ही नहीं। मैं अवाक थी।
चलिए दोस्तों, एक और वाकया लेते हैं........एक विवाह समारोह में जाना हुआ, वहाँ पुरुष और महिलाएं सभी साथ बैठे थे। सभी पुरुष समूह बना कर खूब हंसी-मज़ाक कर रहे थे, लेकिन महिलाएं चुपचाप बैठी थीं। इतने में एक महिला ने आकर चुप्पी तोड़ी, तो सभी महिलाओं ने उसे आखें दिखा कर चुप करवा दिया, मानो वो किसी मर्यादा तोड़ रही हो। और फिर सब शांत हो गया। किसी भी बात का, मज़ाक का कोई रिएक्शन ही नहीं। अक्सर महिलाएं बातें तो खूब करती हैं, लेकिन हास्यबोध नहीं दिखता।
मिसेस शर्मा बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती हैं। उस दिन उनके पति ने कहा, “आजकल तुम्हारे हाथों में वो स्वाद नहीं रहा, जो पहले था। वो झट से बोलीं, “आप भी तो अब पहले जैसे नहीं रहे...।“
दोनों इस बात पे हंस पड़े... मिसेस शर्मा इस बात पे बहुत बड़ा झगडा कर सकती थीं, लेकिन उनके हास्य बोध ने बचा लिया।
ये कुछ उदहारण हैं उन महिलाओं के, जो अपनी ज़िंदगी में यहाँ-वहाँ बिखरे हास्य को समेट लेती हैं। जो हँसना जानती हैं, दूसरों को हँसाना भी जानती हैं। लेकिन अफ़सोस ये कि कितनी महिलाएं हैं इन जैसी? जो ठहाके लगाती हैं, खिलखिलाकर हंसती हैं, दिल खोल कर मुस्काती हैं और किसी उदास चेहरे पर प्यारी-सी मुस्कान सजा देती हैं।
अक्सर औरतों का हंसी, ठिठोली, ठहाकों से कोसों दूर का नाता होता है। ये स्थिति सभी जगह दिखती है, जैसे जब वो पार्टी में होती हैं, या पिकनिक में, दोस्तों की महफ़िल हो, आफ़िस हो या घर। वो सभी जगह अपने होंठों पे चुप का ताला लगाए रहती हैं, बातें चाहे कितनी भी कर लें, लेकिन हँसते हुए कम ही देखी जाती हैं। बहुत ज़्यादा हुआ, तो धीरे से मुस्करा देंगी, लेकिन वो भी प्लास्टिक वाली मुस्कान। वो खुद हँसना-हँसाना नहीं चाहती इसलिए दूसरों के हास्य-बोध को भी कम ही समझ पाती हैं। कभी-कभी तो उन्हें समझ ही नहीं आता कि सब किस बात पे हंस रहे हैं।
किसी महिला से पूछो कि आखिरी बार वो कब खिलखिलाकर हंसी थी, तो उसे जवाब देने में वक्त लगेगा और सोचने में भी। क्या वजह है कि महिलाएं पुरुषों की तरह हंसती नहीं और न ही वो मज़ाक करती हैं। बचपन की हिदायतें पचपन तक पीछा करती हैं, बचपन से ही घुट्टी में घोल के पिलाया जाता है कि लड़कियों को धीरे-धीरे बात करनी चाहिए, मीठा बोलना चाहिए, कम बोलो, हंसों मत ज़ोर से, रास्तों पे या बाजार में या पब्लिक में तो कभी नहीं हंसना। मायके में हो, तो पिता और भाई के सामने मत हंसो, और ससुराल में हो तो सास-ससुर और जेठ के सामने चुप रहो, ऑफ़िस में हो तो बॉस के सामने चुप रहना... उफ़! फिर महिलाएं हंसें तो हंसें कब ?
कब्र में जाने के बाद? शायद वहां भी बंधन हों.....!!
हमारे समाज ने बचपन से ही लड़कों और लड़कियों के बीच अलग -अलग मापदंड तय किए हैं। एक लड़की से हमेशा एक निश्चित व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। उसे कभी किसी के साथ कोई मज़ाक-मस्ती नहीं करना है, हंसना-हँसाना नहीं है क्योकिं सभ्य, शरीफ़, भद्र और सुशील संस्कारवान लड़कियों को ये शोभा नहीं देता। और इस तरह हमारे समाज ने सुंदर होठों से सुंदर मुस्कान छीन ली....खिलखिलाहट पर बंदिशें लगा दीं।
और उन आज्ञाकारी लड़कियों ने चुपचाप शराफ़त का लबादा ओढ़ कर अपनी हंसी और अनगिनत मुस्कानों की हत्या कर दी। इसी तरह बरसोंबरस से होठों के किनारों तले कई मुस्कानें दम तोड़ती आई है। फिर धीरे-धीरे महिलाओं ने इसे अपने स्वभाव में शामिल कर लिया। एक तो वे वैसे ही संवेदनशील स्वभाव वाली होती हैं, अक्सर उन्हें रोने-धोने, सिसकने वाली ही समझा जाता है, ज़रा-ज़रा सी बात पे रो देना, मायके में भाइयों ने मज़ाक किया तो रो दिए, ससुराल में ननद-देवर ने छेड़ दिया, तो रो पड़े। किसी ने मोटी कह दिया या किसी ने नाटी कह दिया, तो आंसू छलक आए। ऐसे अनगिनत उदाहरण हम रोज़ अपने आसपास देखते हैं। वे किसी मज़ाक को सहजता से नहीं ले पातीं। माना कि महिलाएं भावुक होती हैं, किसी भी मज़ाक को सहजता से नहीं लेती और खुद पर हँसना उन्हें कम आता है। वैसे भी खुद पर हंसने का हौसला हर किसी में होता भी नहीं, अक्सर पुरुष यही सोचते हैं कि भई महिलाओं से संभल कर बात करनी चाहिए, न जाने किस बात का बुरा मान जाएं या रो पड़ें।
दोस्तों! क्या कभी आपने ऐसी किसी महिला को देखा है, जो ज़ोर -ज़ोर से हंस रही हो और आपने उसके हंसने के कारण उसे जज न किया हो, न ही उसने ध्यान दिया हो कि हंसते -हंसते वो कैसी दिख रही है? उसकी आंखें छोटी और दांत बाहर दिख रहे हैं? शायद भी ही देखा हो....महिलाएं हमेशा अपने लुक्स को ले के सचेत रहती हैं। वो हंसते हुए भी खूबसूरत दिखना चाहती हैं। कहीं चेहरा बिगड़ न जाए, दांत न दिखे आंखें सिकुड़ न जाए आदि ..इतनी तैयारियों के बाद कोई क्या ख़ाक हंसेगा ..वो तो सिर्फ़ प्लास्टिक की हंसी हंसेगा, और फिर लोग तो बैठे ही हैं, उन्हें जज करने के लिए.... है न दोस्तों!
अगर लोग किसी ज़िंदादिल महिला को हंसते हुए देखते हैं, तो अजीब-सी शक्ल बनाते हैं, उसे घूर -घूर के देखते हैं, मानो वो कोई गुनाह कर रही हो। उसे ज़ोर-ज़ोर से हंसते देख उस असभ्य मान लिया जाता है, यही वजह है कि महिलाओं की मुस्कराहटें कहीं गुम हो गई हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार पुरुषों और महिलाओं के हास्यबोध में काफ़ी अंतर होता है। महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा हास्य उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। यही वजह है कि हास्य कवि सम्मलेन हो या हास्य के कार्यक्रम महिलाएं इनमें कम ही नज़र आती हैं।
तो क्या हम ये मान लें कि महिलाएं नीरस होती हैं, बोरिंग और बुद्धू टाइप की होती हैं। कतई नहीं, महिलाओं में भी हास्य की उतनी ही समझ होती है, जितनी पुरुषों में। और हर महिला अपनी ज़िंदगी के साथी के रूप में ऐसे ही पुरुष की कल्पना करती है, जो हंसमुख हो, खुश दिल हो, वह भी रोते से, चुप्पे से साथी को कोई पसंद नहीं करती। फिर वो खुद क्यों गुमसुम रहती है, मज़ाक नहीं करती, ज़िंदगी को ज़िंदादिली से नहीं जीती?
दोस्तों! याद रखिएगा, घर में रहने वाली महिला यदि चुप या उदास रहेगी, तो उनके बच्चे भी कभी नहीं हंसेंगे। जिस घर में महिलाएं मुस्काती नहीं, हंसती नहीं, उस घर में ख़ामोशी के साये अपना डेरा जमा लेते हैं।
हमारी ज़िंदगी में चाहे जितनी भी परेशानियां हों, दुःख हों, पीड़ा हो, हंसी और मुस्कान फिर भी बोई जा सकती है, उगाई जा सकती है, इसमें कोई खर्चा नहीं होता, न कोई खाद-पानी देना होता है। हंसी तो एक प्रार्थना है, जिसे आलाप से लेकर स्थाई तक पहुंचने के लिए दोहराव की जरूरत नहीं होती, उसे तो सिर्फ़ सम्मिलित स्वरों की ज़रूरत होती है।
दोस्तों! हंसी से बड़ी कोई नेमत नहीं, वरदान नहीं, इस पर तो कोई टैक्स भी नहीं, जो लोग नहीं हंसते, वो कभी ज़िंदगी का लुत्फ़ नहीं उठा पाते। हंसना-हँसाना कोई बुरी बात नहीं है ये तो एक उन्मुक्त बहता झरना है, इसे रोकना नहीं, टोकना नहीं, बहते देना है। आप हँसेगी, तो दुनिया हँसेगी, आप मुस्काएंगी तो सारी दुनिया मुस्काएगी। हंसी से बैर नहीं दोस्ती कीजिए। यदि आप ऐसा करेंगी, तो सोसायटियों में चल रहे ‘लाफ़्टर क्लब’ बंद हो जाएंगे, क्यों क्या विचार है, दोस्तों!
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