Wednesday, 2 July 2025

4 टूटे पै फिर न जुरै, जुरै गांठ परि जाए

 4 टूटे पै फिर न जुरै, जुरै गांठ परि जाए

बड़े ही प्यार से सौरभ ने शादी का निमंत्रण दिया, बड़ा ही आग्रह, मनुहार और अधिकार सा लगा, जब उसने कहा, आपको तो आना ही है, मेरे लिए समय नहीं निकालेंगी? खैर, यह उसका प्यार ही था कि मैं सौरभ और दीक्षा की शादी में पहुंची। प्री वेडिंग फ़ोटो सेशन से लेकर रोका, हल्दी, सगाई, बैचलर्स पार्टी, कॉकटेल, और न जाने क्या-क्या? उसने मुझे सारी फोटो भेजी थीं। हर फोटो की में फ़िज़ाओं में रोमांस का नशा दिखा। कितने खुश होते हैं, सब शादियों में। जिनकी शादी हो रही है, वे भी और जो शादियों में मेहमान बन कर आते हैं, वे सब भी। खूब आनंद का, जोश का, डांस फ़्लोर पर ठुमकों का, हंसी-ठिठोली का, उल्लास का माहौल रहता है। वरमाला के समय तो मानो शांत सागर में हिल्लोरें उठने लगती हैं। लगता है जीवन भर का सारा हास-परिहास उसी समय सपंन्न होगा। और फिर सभी वर-वधू को उनके वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं देकर अपने-अपने घर चले जाते है। हमारी हिंदी फिल्मों में भी अंत में सभी किरदार आपस में मिल जाते है। सभी के विवाह हो जाते है और फिल्म का ‘दी एंड’ हो जाता है।

हां, इधर लगभग डेढ़ साल बाद सौरभ का फ़ोन आया। हमेशा की तरह मैंने चहक कर पूछा, और कैसे हो सौरभ?

दीक्षा कैसी है?

बड़े दिनों बाद याद आई मेरी?

सौरभ काफ़ी शांत था, उसकी आवाज़ में दर्द छलक रहा था, बोला, सोच रहा था, आपसे बात करूं, पर हिम्मत नहीं हुई, बात करने की।

मैंने पूछा, क्यों क्या हुआ? सब ठीक?

वह मानो भरा बैठा था, फफक-फफक कर रोने लगा, बोला, हमारी शादी नहीं चली, टूट गई।

इस पर मेरी हिम्मत नहीं हुई कि पूछ सकूं कि क्या हुआ? कैसे हुआ?

इसीलिए मैं अक्सर यह सोचती हूँ कि क्या विवाह का संपन्न हो जाना या फ़िल्म का ‘दी एंड’ हो जाना ही खुशहाल जीवन की गारंटी है? यदि हाँ, तो फिर आए दिन विवाह टूट क्यों रहे हैं?  क्यों वकीलों और काउंसलरों के दरवाज़े खटखटाए जा रहे हैं?  पहले अपने लिए योग्य साथी की तलाश, फिर विवाह का खर्चा और फिर विवाह को बचाने की जद्दोजहद। विवाह में होने वाले खर्चे से ज़्यादा है महंगा है विवाह को बचाना। टूटते रिश्ते, बढ़ती दूरियाँ, अवसाद, निराशा, अकेलापन और मानसिक तनाव का पर्याय बनकर रह गए हैं विवाह।

इन दिनों देश-विदेश में हज़ारों महिला और पुरुष अपने विवाह को बचाने या उससे छुटकारा पाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। विवाह के अलावा आजकल आज बिना विवाह के भी एक़ दूजे के साथ रहने की रीत चल पड़ी है, जिन्हें हम लिव इन रिलेशनशिप कहते हैं, जिसमें पुरुष और महिला बिना विवाह किए साथ-साथ रहते हैं।

शादी एक साझेदारी है, गठबंधन है कम्पैटिबिलिटी का, जिसमें दोनों पक्ष शामिल होने का फैसला करते हैं, जिसका मतलब है कि आप दोनों एक रिश्ते में बंधे हैं, अपने कार्यों के लिए आप जवाबदेह होने के साथ-साथ प्रतिबद्ध भी हैं। जब चीज़ें खराब होती हैं, तो पति या पत्नी को आईने में दिखने वाले अपने अक्स के बजाय किसी और पर दोष मढ़ना आसान लगता है। ज़िम्मेदारी लेना रिश्ते को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है। जिस क्षण आप "हां" कहते हैं, उस क्षण से लेकर विवाह समाप्त होने तक, जो कुछ भी होता है, उसके लिए जिम्मेदार होते हैं, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। आपको खुद को कोसने की ज़रूरत नहीं है; आपको बस इतना करना है कि चीजों को सुधारने से पहले खुद से झूठ बोलना बंद कर दें। रिश्ते को बचाने के लिए, व्यक्ति को पूरी ज़िम्मेदारी तो लेनी ही पड़ेगी।

दोस्तों! कभी-कभी चुप रहना भी ज़रूरी है। मेरी मां अक्सर कहा करती हैं कि एक चुप सौ को हरावे। है भी सच! विवाद के समय, झगड़े के समय आप जितना ज़्यादा बात करेंगे, वह उतना ही आग में घी का काम करेगा। घी के स्रोत को हटा दें, और आग बुझ जाएगी, जिससे आप दोनों को संभलने और अपनी कठिनाइयों को दूर करने के तरीके पर पुनर्विचार करने का समय मिलेगा। जब कोई जीवनसाथी क्रोधित या भयभीत होता है, तो उसका व्यवहार अनपेक्षित हो जाता है, ऐसे में यदि दूसरा व्यक्ति चुप रह सकता है, उस जगह से हट सकता है, क्या उसी समय सारा फ़ैसला करना ज़रूरी है? पर हमें तो अपना अहम शांत करना है, अपने साथी को दंगल में हराना है, फिर चाहे रिश्ता टूटे तो टूटे!

हां दोस्तों! अंधड़ के गुज़र जाने के बाद बातचीत सबसे बड़ा अस्त्र है, मसले सुलझाने के लिए... आप अपने साथी के साथ बैठें, बात करें, चाय-कॉफ़ी की चुस्की लें, थोड़ा घूमने चले जाएं, दूर नहीं, तो मॉर्निंग वॉक कर लें, इस दौरान बात करें शांति से, समझदारी से, रिश्तों को निभाने की मंशा अगर दोनों रखते हैं, तो यह कारगर होगा।

कई बार हम अपने आसपास के लोगों को नहीं समझ पाते हैं। हम जिनके साथ समय बिताते हैं, दिनभर बातें करते हैं, वे लोग चाहे हमारे घर के हों, या फिर हमारे दफ़्तर के या हमारे मिलने-जुलने वाले, ये हमारे रिश्तेदार भी हो सकते हैं, इनमें से बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो या तो पूर्वाग्रही ही होते हैं या फिर नकारात्मक होते हैं, जिनके द्वारा कही गई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष बातें हमें प्रभावित करती हैं और उनका असर हमारे रिश्तों पर होता है। इस बात के लिए हमें सजग रहना चाहिए कि हमारे मित्र, मिलने-जुलने वाले और रिश्तेदार, जिनके परिवार खुशहाल हैं, उनके साथ हम समय बिताएं अपने विवाहित जीवन को कैसे जीना है या इसके लिए हम अपने रोल मॉडल भी बना सकते हैं, हम अपने आसपास के लोगों में ढूंढें, तो हमें ऐसे सकारात्मक लोग अवश्य मिलेंगे। जैसी संगति होती है, वैसा ही हमारा मानसिक स्तर और मानसिक क्षितिज बन जाता है, यह याद रखना ज़रूरी है दोस्तों! है न....।

जब विवाहित जोड़े लड़ते हैं, तो यह आसानी से “हर आदमी अपने लिए” वाली स्थिति में बदल सकता है। यह एक ढलान वाला चक्र है, जो अक्सर विनाशकारी परिणाम की ओर ले जाता है। रिश्ते को टूटने से बचाने के लिए, यदि आप चीजों को बदलना चाहते हैं, तो आपको अपने समझौता कौशल में सुधार करना होगा। इसकी शुरुआत थोड़ा-बहुत से की जा सकती है, जैसे वेज और नॉन वेज भोजन....यदि इसी को मुद्दा बनना था, तो शादी से पहले क्यों नहीं सोचा? पर्याप्त छोटी-छोटी कोशिशों से हताशा फीकी पड़ने लगेगी। आप पाएंगे कि बीच में रहना सड़क पर रहने से कहीं ज़्यादा अच्छा है। यदि आप अपने जीवनसाथी के सुख को अपने जीवन में अपने सुख से ज़्यादा प्राथमिकता देते हैं, तो यह किसी की नज़र में नहीं आएगा। रिश्ते को बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदमों में से एक है समझौता करने का प्रयास करना। अगर आप अपने विवाह को बचाना चाहते हैं, तो आपको अपने रिश्ते को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा। इसका मतलब है इसे अपने बच्चों, अपने करियर या किसी और एंगेजमेंट से ऊपर रखना होगा। आजकल ऐसा भी देखा जा रहा है कि पति-पत्नी साथ-साथ बैठे हैं, पर दोनों अपने=अपने फोन में लगे हुए हैं। जो सामने है, वह अदृश्य है, जो अदृश्य है, आभासी है, वर्चुअल है, वह दिल में है।आपको अपने रिश्ते को अपने जीवन की अन्य सभी भी रिश्ते से ऊपर रखना ही होगा। एक-दूसरे के साथ समय बिताना और एक-दूसरे की भावनाओं को साझा करना, यह प्रेम के धागे को टूटने नहीं देता, उसमें गांठ नहीं पड़ने देता।

लेकिन संतोषजनक बात ये है कि मनोविज्ञान में ऐसी चिकित्सा विधियां हैं, जिनके द्वारा विवाह या टूटते रिश्तों को फिर से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। वैवाहिकी चिकित्सा एक़ तरह की समूह चिकित्सा है, जो पारिवारिक चिकित्सा के बहुत करीब है। इस चिकित्सा विधि में पति और पत्नी के बीच के पारस्परिक संबंधों को उत्तम बनाने का प्रयास किया जाता है। निस्संदेह आपके लिए भी यही सच है। काउंसलिंग करवाना रिश्ते से बचने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है। भारत में छोटे शहरों में काउंसिलिंग के महत्व को समझने में अभी वक्त लगेगा, पर बड़े शहरों में लोग थेरेपी ले भी रहे हैं, और ठीक भी हो रहे हैं। हां, विदेशों में इसका खूब चलन है और लोग इस बात को छुपाते नहीं, कि वे थेरेपिस्ट से मिल रहे हैं। दोस्तों, हमें भी इन कृत्रिम दीवारों को गिराना होगा, क्योंकि ये अभेद्य नहीं हैं।

अरे हां! बातों-बातों में सौरभ को तो भूल ही गई....आज वह खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी जी रहा है, दीक्षा के साथ नहीं, आकांक्षा के साथ.....

दोस्तों! विवाह प्रेम के धागे से बुना एक इंद्रधनुषी कपड़ा है, इसे प्रेम से ही सहेजना होगा। ये धागा है विश्वास का है, भरोसे का है, जीवन-भर का है,  इसे मत तोड़ो चटकाय...

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