Wednesday, 2 July 2025

11 आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है?

 

11 आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है?

मेरा नाम अमित है और मैं तनाव से पीड़ित हूँ। बस, मैंने कह दिया। कुछ लोगों के लिए यह एक बड़ा रहस्योद्घाटन है, दूसरों के लिए यह ज़ोर से कहना मुश्किल है। मुझे इससे कोई शर्म नहीं है, आप देखिए, मैं जानता हूँ कि आप सभी भी इसका अनुभव करते हैं, आप बस यह नहीं जानते कि आप ऐसा करते हैं या आप इसे अच्छी तरह से प्रबंधित करते हैं और इसलिए आप इसे अब तनाव नहीं मानते। यह कमज़ोरी का संकेत नहीं है, यह आधुनिक जीवन का संकेत है।

मैं बातूनी हूँ, मैं पहले ऐसा नहीं करता था। मेरा मतलब है कि चीजों के बारे में खुलकर और ईमानदारी से बात करना। मैंने कठिन तरीके से सीखा कि लोगों को यह बताना महत्वपूर्ण है कि आप क्या महसूस कर रहे हैं, आदर्श रूप से उस समय लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो जितनी जल्दी हो सके। सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैंने सीखी वह यह थी कि मैं अजेय नहीं हूं, मैं काफी करीब हूं लेकिन मैं टूट सकता हूं, जैसा कि हर कोई कर सकता है।– ये किसी की डायरी के कुछ शब्द हैं।

दरअसल, आज के दौर की सबसे बड़ी समस्या का नाम अगर कुछ है, तो वो तनाव है। सभी रोगों का जनक, हरेक को हैरान परेशान करने वाला मर्ज़, ये हर जगह मिलता है, लेकिन इसकी कोई दवा कहीं नहीं मिलती। आज इस समस्या से 80% लोग जूझ रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि हर रोग पहले मन में जन्म लेता है और बहुत बाद में जाकर देह पर उसका असर देखने को मिलता हैं। ये तनाव भी ऐसा ही मर्ज़ है।

तनाव एक अनुक्रिया है, जिसका असर हमारे मन और देह दोनों पर पड़ता है। हमारे शरीर में मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिकल) तथा दैहिक (फिजियोलॉजिकल) दोनों तरह की अनुक्रियायें होती हैं, यानी व्यक्ति जब तनाव में होता है, तो मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से क्षुब्धता (डिस्टर्बेंस) अनुभव करता है। जब ये अनुक्रियायें मनोवैज्ञानिक हों, तो व्यक्ति बहुत परेशान होता है। उसे व्यर्थ की चिंताएं, आशंकाएं, डर, संदेह घेरे रहते हैं। कभी उसे बहुत क्रोध आता है, तो कभी उसका व्यवहार आक्रामक हो जाता है। आशंकाएं, चिंताएं उसे इतना घेर लेती हैं कि वो उनसे निबटने में खुद को अक्षम पाता है। अगर ये अनुक्रियाएँ दैहिक हों, तो व्यक्ति का रक्तचाप बढ़ जाना, पेट में गड़बड़ी, हृदय-गति असामान्य होना, श्वसन गति में परिवर्तन आदि लक्षण होते हैं- इन प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप व्यक्ति के शरीर में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है, हारमोन असंतुलित हो जाते हैं और कैंसर, मधुमेह आदि कई रोग जकड़ लेते हैं। इन दैहिक प्रतिक्रियाओं का एकमात्र उद्देश्य होता है कि किस तरह से तनाव के साथ समायोजन बिठाया जाए। चिकित्सक इनका इलाज दवाओं द्वारा करते हैं। लेकिन मन को तनाव रहित करने के लिए मनोचिकित्सकों का या काउंसलर की ज़रूरत होती है।

अक्सर तनाव को नकारात्मक घटनाओं से या दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं (नेगेटिव इवेंट) से जोड़ कर देखा जाता है जबकि सच्चाई ये है, कि तनाव सकारात्मक घटनाओं से भी होता है उदहारण के लिए, विवाह के समय होने वाला तनाव, अच्छे पद पर पदोन्नति के लिए तनाव, बहुत बड़ा पुरस्कार या इनाम पाने का तनाव, किसी लेखक को उसकी आने वाली नई पुस्तक को लेकर तनाव, तो किसी अभिनेता को आने वाली नई फिल्म को लेकर तनाव हो सकता है।

कभी -कभी व्यक्ति को किसी व्यक्ति विशेष से तनाव होता है, और वो व्यक्ति सामने बना रहे तो वह उसके प्रति आक्रामक हो जाता है, इसे उदाहरण से समझें- किसी बच्चे को यदि उसके लक्ष्य तक नहीं पहुँचने दिया जाए, तो उसमे एक तरह की कुंठा (frustration) आती है और फिर वो आक्रामक हो जाता है।

लेकिन कभी -कभी व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि उसकी निराशा, कुंठा, हताशा का क्या कारण है? वो खोजता रहता है कि उसकी कुंठा या परेशानी का सबब क्या है? स्रोत (source) कहाँ है? कभी जो स्रोत मिल भी जाए, तो व्यक्ति किसी कारणवश या परिस्थितिवश उस शक्तिशाली स्रोत के प्रति आक्रामक नहीं हो पाता, तो वो खुद से कमज़ोर व्यक्ति या वस्तु पर क्रोध निकालता है और तनाव कम करता है। उदहारण के लिए कोई पति-पत्नी में झगड़ा होता है, तो क्रोध बच्चों पर निकालता है। दफ्तर का गुस्सा, अपने बॉस का गुस्सा घरवालों पर निकालता है और आखिर में वो बेकसूर बच्चे अपना गुस्सा घर की चीज़ों या बेज़ुबान  खिलौनों को तोड़ कर, किताबों को फाड़ कर निकालते हैं।

जो लोग क्रोध को व्यक्त नहीं कर पाते, वो मन में घुटते हैं और गहरे विषाद तथा भावशून्यता में चले जाते है। जब आक्रमकता दिखाने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिलती, तो वो उस वस्तु के प्रति उदासीन हो जाते है एवं खुद को निस्सहाय सा पाते हैं।

कुछ लोग तनाव में आकर अपनी सबसे प्रिय चीज़ को ही चोट पहुंचाते हैं या अपनी कोई अति प्रिय वस्तु को ही तोड़ देते हैं और बाद में फिर पछताते हैं। कुछ विशेष घटनाएँ कुछ व्यक्तियों में अधिक तनाव उत्पन्न नहीं कर पाती तो कुछ के लिए गहरे तनाव का कारण बनती हैं। जैसे किसी वैवाहिक संबंध की टूटन या प्रेम में असफल होना, किसी प्रिय की मृत्यु आदि ऐसी घटनाएँ हैं, जो कुछ व्यक्तियों पर गहरा असर डालती है, तो कुछ पर कम असर होता है। कभी -कभी साधारण सी घटना भी कुछ व्यक्तियों को अधिक सांवेगिक एवं दैहिक क्षति पहुंचाती है।

इनके अलावा एक महत्वपूर्ण कारक है जो आजकल सारी दुनिया में तनाव का कारण बना हुआ है और वो है conflict of motives यानी प्रेरकों का संघर्ष यानी प्रतियोगिताओं के इस दौर में एक-दूजे से आगे निकल जाने की होड़। “उसकी कमीज मेरी कमीज से ज़्यादा सफ़ेद कैसे?” की चिंता में तनाव होता है।

इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण कारक तनाव का है, जिसमें व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर निर्भरता दिखाता है या उसका सुख-दुःख, उसकी हँसी-ख़ुशी सब दूसरे व्यक्ति पर निर्भर हो जाती है, और जब दूसरा व्यक्ति उसे सहयोग नहीं कर पाता, तो तनाव होता है। ये तनाव बहुत खतरनाक भी हो सकता है, जिसमें एक व्यक्ति की पूरी दुनिया दूसरे की हाँ और ना पर चलती है, अक्सर ये तनाव किसी अप्रिय घटना का कारण भी बन जाता है। इसके अलावा दिन-प्रतिदिन की उलझनें जैसे बिजली नहीं आई, पानी नहीं आया, पार्किंग नहीं मिली या नेटवर्क नहीं है जैसे छोटे छोटे तनाव भी व्यक्ति को परेशान करते हैं।

इन सब तनावों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कारक कुंठा यानी frustrations का होना है। जब व्यक्ति की कोशिश किसी लक्ष्य पर पहुँचने में बाधित होती है, तो इससे व्यक्ति में कुंठा उत्पन्न होती है। इनमे विभेद पूर्वाग्रह, कार्य-असंतुष्टि (job dissatisfaction), प्रिय से दूरी, प्रिय की मृत्यु आदि है। उसी तरह दैहिक विकलांगता, अकेलापन, अपर्याप्त आत्मनियंत्रण ये सभी कुंठा के कारण है।

फिर इस मर्ज़ की दवा क्या है?  इस मर्ज़ का कारण चाहे जो भी हो, लेकिन ये बात तय है कि यह व्यक्ति के सांवेगिक एवं दैहिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर तो ज़रुर डालता है। चिकित्सक तनाव कम करने की दवा देते हैं लेकिन मनोविज्ञान समायोजित व्यवहार की सलाह देता है।

शोध बताते हैं कि जिन व्यक्तियों में मनोवैज्ञानिक कठोरता (साइकोलॉजिकल हार्डनेस) अधिक होती है, वे परिस्थिति के तनावपूर्ण होने पर भी परेशान नहीं होते। वो समायोजित व्यवहार द्वारा अपने आस-पास के वातावरण, उसकी आंतरिक मांगों और उसके बीच के संघर्षों, अंतर्द्वंद्वों को नियंत्रित करना सीख लेते है। पर्यावरण की माँग, शारीरिक सीमाओं एवं अंतर्वैयक्तिक चुनौतियां, सभी को अपने मूल्यों, प्रसाधनों आदि के साथ इस तरह से व्यवस्थित करता है कि उनका प्रभाव कम से कम हो और फिर इससे तनाव नहीं उपजता है।

लेकिन ये इतना आसन भी नहीं है। ये समायोजन हर व्यक्ति की गति, अनुभूतियों, बौद्धिक क्षमता तथा आत्मनियंत्रण पर निर्भर करता है। जैसे ही व्यक्ति को तनाव घेरता है, वो अपने तरीके से इसे कम करने के प्रयास करता है। कुछ व्यक्ति कुछ ख़ास तरह का व्यवहार करते हैं, वो शराब या सिगरेट की मात्रा बढ़ा देते हैं, कुछ लोग दोस्तों का समर्थन प्राप्त करना पसंद करते हैं और समर्थन मिल जाने पर उन्हें लगता है, अरे! ये समस्या तो उतनी गंभीर थी ही नहीं, जितना मैंने इसे समझा था।

कभी -कभी व्यक्ति तनाव के कारण अपनी इच्छाओं का दमन करता है। अपने मन की बात को किसी से न कहने का दुःख और अपनी इच्छाओं को, यादों को साझा न करने का दुःख उसे मन ही मन तनाव देता है, फिर व्यक्ति उन समस्त यादों और इच्छाओं का दमन शुरू कर देता है वो जानबूझ कर अपने चेतन से, मन से, उन सभी बातों को हटा देना चाहता है, जो उसके दुःख का कारण बन रही हैं ताकि वो अपना ध्यान दूसरी तरफ लगा सके, वो विकल्प खोजता है, खुद को व्यस्त रखता है।

अगला उपाय है प्रतिक्रिया निर्माण या reaction formation इसमें व्यक्ति तनाव उत्पन करने वाली इच्छा या विचार के ठीक विपरीत इच्छा या विचार विकसित कर लेता है और अपना तनाव कम करता है। उदाहरण के लिए, प्रेम में आकंठ डूबा हुआ व्यक्ति हमेशा प्रेम को अस्वीकार करता है। इस अस्वीकार भाव से उसे मानसिक शांति मिलती है थोड़े समय के लिए वो खुद को तनाव रहित महसूस करता है।

कुछ व्यक्ति तनाव से बचने लिए rationalization की नीति अपनाते है यानी जब बाहरी वास्तविकता बहुत कष्टकर और दुखदायी हो जाती है, तो व्यक्ति असहज हो उठता है और वो वास्तविकता के अस्तित्व को नकारने लगता है, उसे मानने से ही इनकार करता है और अपना तनाव कम करता है।

कभी-कभी व्यक्ति बौद्धिकीकरण यानी intellectualizetion की नीति भी अपनाते देखे गए हैंi इसमें व्यक्ति अपने चारों और एक रक्षा-प्रक्रम अपनाता है, अपना रक्षा-कवच बनाता। वो अपनी एक खोल में क़ैद रहता है और बाहरी जगत से अलगाव या निर्लिप्तता विकसित करता है।

इस तरह हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से तनाव को कम करने के कई उपाय अपनाता है।

बहुत से लोग सोशल साइट्स पे जाकर अपना तनाव कम करते हैं, कुछ लोग संगीत सुनकर कुछ लोग खुद से ही बाते करते हैं। ये सभी उपाय अपना कर भी व्यक्ति तनाव से पूर्णरूप से बच तो नहीं पाता है, उसे कोई न कोई तनाव हर समय जकडे ही रहता है। "मर्ज़ बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की" वाले अंदाज में, पर तनाव कम अवश्य हो जाता है।

ऐसे समय में किसी योग्य चिकित्सक से बात करनी चाहिए। किसी भरोसेमंद साथी या मित्र से अपनी परेशानी साझा की जा सकती है। याद रखिए, सहजता और सरलता आपको बहुत से तनाव से बचा सकती है। झूठ ,छल, प्रपंच, ईर्ष्या और स्वार्थ हमेशा तनाव के कारण बनते हैं। इनसे खुद को दूर रखना होगा, कोई भी चिकित्सक आपको सिर्फ़ परामर्श और दवा ही दे सकता है। वो आपको खुश नहीं कर सकता। ख़ुशी आपको खोजती हुई कभी नहीं आती है, आपको जाना होता है उसके पास, अपने आसपास खुशियाँ तलाशनी होती है। इस मर्ज़ का इलाज बाहर नहीं भीतर ही मिलेगा, और दवा भी भीतर ही मिलेगी।

और अंत में यह याद रखिएगा दोस्तों! कि आपका जीवन अनमोल है, आप खुशियां बांटने इस धरती पर आए हैं, और यह तभी कर पाएंगे जब आप स्वयं तो तनाव रूपी कुहासे से मुक्त करेंगे और दीपक की भांति प्रकाशित होंगे।


No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...