14 जा, जी ले अपनी ज़िंदगी
दोस्तों! कल टीवी के चैनल बदलते हुए एक डायलॉग कानों में पड़ गया ‘जा सिमरन जा, जी ले अपनी ज़िंदगी’…..मैं सोचने लगी कि कहने को तो ये एक फिल्मी डायलॉग है, पर असल में बहुत गहरा अर्थ छिपा है इसमें....वैसे सोचा जाए तो हम में से कितने लोग अपनी ज़िंदगी जी पाते हैं....कुछ लोग कहते हैं कि वे तो बस काट रहे हैं....कुछ कहते हैं कि बस कट रही है ज़िंदगी....बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो अपने भीतर झांकते हैं और ज़िंदगी जीने की कोशिश करते हैं यानी अपने सपनों को परवाज़ देते हैं ..
"जा सिमरन जा, जी ले अपनी ज़िंदगी" का भाव यह है कि किसी व्यक्ति को उसकी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीने की स्वतंत्रता देना। जीवन को अपनी मर्जी से जीना चाहिए और अपने सपनों को पूरा करने का मौका नहीं छोड़ना चाहिए। यह स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का प्रतीक है। इस वाक्य में सिमरन के पिता उसे स्वतंत्रता और अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने की अनुमति दे रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण और भावनात्मक क्षण है, जहां वे अपनी बेटी को उसकी खुशियों और सपनों की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, भले ही इसका मतलब है कि उसे अपनी परंपराओं और समाज की उम्मीदों से परे जाना होगा । यह संवाद आत्मनिर्भरता और व्यक्तिगत आजादी का प्रतीक है। इसका अर्थ यह भी है कि खुद को पहचानो। समाज की सड़ी-गली मान्यताओं को तोड़ अपने लिए अपनी पसंद के रास्ते चुनना, समाज का विरोध नहीं होता। जो जीर्ण-शीर्ण हो गया है, उस प्रासाद को तो ध्वस्त होना ही होगा, नहीं तो नवनिर्माण के नए अंकुर कैसे खिलेंगे, बेबी स्टेप्स ही सही, स्टेप्स तो लेने ही होंगे। कोई भी प्राणी हो, सब उन्मुक्तता चाहते हैं, वह बंधन नहीं चाहता, चाहे वे सोने के ही बंधंन क्यों न हों? इस धरती पर आए हैं, किसी निमित्त के साथ....इस निमित्त को पूरा करने के लिए जीना ज़रूरी है, और केवल जीना ही नहीं, आनंद के साथा जीना, खुद को और दूसरों को प्रेरित करना, जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना, छोटी-छोटी खुशियों का महत्व समझना।
पिछले दिनों एक मित्र का संदेश मिला, जिसमें उन्होंने अपनी एक समस्या साझा की थी। मित्र की समस्या पढ़कर मुझे लगा कि ना जाने कितने लोग इस तरह की समस्या से गुजर रहे होंगे और ज़िंदगी को निराशा में डुबा चुके होंगे। उन्होंने अपनी सुंदर ज़िंदगी के सपनों के बारे में लिखा था, पर यह भी लिखा था कि जिसके साथ ये सपने देखे थे, वो अब उनकी ज़िंदगी से दूर चली गई हैं, कभी वापस न आने के लिए। सामान्य-सी बात है, ज़िंदगी में बहुत कुछ ऐसा घटता है, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती है। लोग मिलते है, अलग हो जाते हैं, बिछड़ जाते हैं। पुराने साथी छूट गए, तो नए मिल जाते हैं। ज़िंदगी यूं ही चलती रहती है।
यह भी सामान्य-सी बात है, लेकिन असामान्य बात यह हुई कि मेरे मित्र अभी तक उस रिश्ते से खुद को अलग नहीं कर पा रहे हैं। जो चला गया, उसकी याद में ज़िंदगी तबाह करना और अब उसकी ख़ुशी के लिए हर वो काम करना, जो वो चाहता था। उसके सिवा किसी और को मन में न बसाना क्योंकि प्रेम एक बार ही होता है आदि आदि... हजारों बातें... अक्सर ऐसी बातें हमें हमारे आसपास सुनने में आती रहती हैं और ऐसे लोग भी दिख जाते हैं, जिन्होंने किसी व्यक्ति विशेष के कारण अपनी ज़िंदगी को बरबाद कर लिया हो। प्रेम जिससे था, वो पात्र नहीं मिला, तो विवाह ही नहीं किया या समाज के दबाव में आकर कर भी लिया, तो ज़िंदगी भर अतीत से चिपके रहे और वर्तमान को अनदेखा करते रहे। सुनने, पढ़ने में ये साधारण-सी दिखने वाली बातें, बिलकुल भी साधारण नहीं हैं। कितने लोग हैं, जो अपने साथी के बिछड़ने के गम में या तो खुद को चोट पहुँचाते हैं, अपने साथी को चोट पहुँचाते हैं या फिर नशे के अंधेरों में खो जाते हैं। ऐसी असामान्यता पढ़े-लिखे मेंच्योर लोग में भी दिखती है।
यहाँ एक बात और जोड़ना चाहती हूँ कि अक्सर महिलाओं को अति भावुक और संवेदनशील समझा जाता है तथा दलीलें दी जाती हैं की प्रेम और रिश्तों के मामलों में महिलाएं ज्यादा सच्चाई के साथ जुड़ती हैं या कि महिलाएँ शिद्दत से प्रेम करती हैं और पुरुष प्रेम को यूं ही हलके तौर पर लेता है। लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि पुरुष जब किसी के साथ खुद को जोड़ते हैं, तो वे आसानी से अपने साथी को भुला नहीं पाते, वे शिद्दत से उससे जुड़े ही रहते हैं। महिलाएँ जहाँ विवाह के बाद अपनी नई दुनिया में रम जाती हैं, वहीं पुरुष ज़िंदगी भर अपने दिल पे बोझ लिए घूमते रहते हैं। एक और फिल्म की बात करते हैं, ‘वो सात दिन’। कुछ याद आया दोस्तों?
अब सवाल यह है कि क्या सच में प्रेम इतनी बड़ी चीज़ है कि लोग खुद को मिटा दें? या जिसे प्रेम करते हैं, उसे ही मिटा दे? या फिर अपनी पूरी ज़िंदगी को ही तबाह कर डालें? क्या खुदा ने, ईश्वर ने प्रेम इसीलिए बनाया है?
प्रेम शब्द का संकीर्ण और व्यापक दोनों ही अर्थों में प्रयोग किया गया है। व्यापक रूप की बात करें, तो प्रेम एक प्रबल सकारात्मक संवेग है, जो एक बार अपने लक्ष्य को तय कर लेता है, तो दूसरे सभी लक्ष्य गौण हो जाते हैं। मनुष्य अपने उस लक्ष्य को ज़िंदगी की आवश्यकता और हितों का केंद्र बना लेता है। जैसे देश से प्रेम करना, माँ का बच्चों के प्रति स्नेह, संगीत या किसी कला के प्रति प्रेम आदि-आदि। लेकिन संकीर्ण अर्थों में प्रेम मनुष्य की एक प्रगाढ़ तथा अपेक्षाकृत स्थिर भावना है, ये भावना मनुष्य में अपनी महत्वपूर्ण वैयक्तिक विशेषता द्वारा दूसरे व्यक्ति की ज़िंदगी में अपनी जगह बनाने से संबंधित है। किसी व्यक्ति से प्रेम करना और बदले में उससे भी प्रगाढ़ता तथा स्थिर जवाबी की भावना रखना, इस भावना में व्यक्ति अपने प्रिय पात्र के अलावा किसी और से प्रेम नहीं कर पाता। कोई व्यक्ति-विशेष उसके लिए सबसे अहम हो जाता है। अपने प्रिय पात्र को हासिल करने के अलावा उसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं रहता। इस राह में जो भी बाधाएँ आती हैं, उन्हें वो हटा देना चाहता है, चाहे समाज के नियम हों या परिवार की मर्यादा। आए दिन होने वाले विवाहेतर संबंधों के मूल में भी यही मंशा काम करती है। परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन प्रेम के नाम पर ये अपराध बखूबी हो रहे हैं।
आप जहाँ है, जिसके साथ है उसे ही प्रेम कीजिए। यह भी नहीं हो सकता, तो खुद से ही प्रेम कीजिए। याद रखिए, प्रेम एक गहरी समझ है, एक घटना, जो किसी भी क्षण आपकी ज़िंदगी में घट सकती है। आपके रोकने से या तर्कों से वो रुकने वाली नहीं है। हम अपने ज़िंदगी में कई बार, कई तरह का और बार-बार प्रेम करते हैं क्योंकि प्रेम हमारी ज़रूरत है।
हम ना तो समाज के बिना और ना ही प्रेम के बिना जीवित रह सकते हैं। जो लोग प्रेम की पवित्र भावना और समाज के बीच संतुलन बना लेते हैं, जो प्रेम को व्यापकता देते हैं, प्रेम के सही अर्थों को खोजने की कोशिश करते हैं, इसे एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी के रूप में समझने की कोशिश करते हैं, वे इन अंतर्द्वंद्वों और कुंठाओं से भी जूझ लेते हैं और अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों और सामाजिक सरोकारों के बीच तारतम्य बिठा ही लेते हैं।
संतुलन में सुगंध है। प्रेम को व्यापक कर दिया जाए, मन की खिडकियों को ज़रा खोल दिया जाए, संशय, भय, शंकाओं के परदे को हटाया जाए, जो इस पल है, उसे याद रखें, जो जा रहा है उसे जाने दीजिए। जो दरवाज़े पर है, उसका स्वागत कीजिए। ये ज़िंदगी आपकी और सिर्फ़ आपकी है और आपको अधिकार है, जीने का, खुश रहने का, मुस्काने का। किसी की इतनी बिसात है कि वो आपकी खुशियाँ, आपके सपने, आपकी हंसी, आपकी मुस्कान आपसे छीन ले? आप जहाँ है, ज़िंदगी वहीं है...खुशियाँ भी वहीं हैं। आप खुश होइए क्योंकि आप खुश होने के लिए ही बने हैं। आप प्रेम कीजिए क्योंकि आप प्रेम के लिए बने हैं। आप मुस्काइये कि आप मुस्काते हुए अच्छे लगते हैं। ज़िंदगी के हर पल को जी लीजिए, हंस लीजिए। किसी से भी मिलिए, तो प्यार कीजिए, खुद से भी प्यार कीजिए... अपने काम से भी... अपने नाम से भी... बस ज़रा-सा ही सही पर... जा, जी ले अपनी ज़िंदगी
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