Tuesday, 8 July 2025

EPISODE-5

 

EPISODE-5

INTRO MUSIC

गंगा तेरा पानी अमृत, झर-झर बहता जाए!

नमस्कार दोस्तों! मैं मीता गुप्ताएक आवाज़एक दोस्तकिस्से- कहानियां सुनाने वाली आपकी मीतजी हाँ, आप सुन रहे हैं मेरे पॉडकास्ट, यूँ ही कोई मिल गया’ के दूसरे सीज़न का अगला एपिसोड ... जिसमें हैं, नए जज़्बातनए किस्सेऔर वही पुरानी यादें...उसी मखमली आवाज़ के साथ...जी हाँ दोस्तों, आज मैं बात करूंगी उस अमृत-धारा की, उस पीयूष-स्रोत की, जिसने न केवल भारत के वक्षस्थल पर सभ्यता और संस्कृति के फूल खिलाए, बल्कि समस्त मानवता में सद्गुणों का आह्वान किया| जी हाँ, मैं बात कर रही हूँ, भागीरथी कीमंदाकिनी की, माँ गंगा की....

पिछले दिनों ऋषिकेश जाना हुआ| गंगा के जल की कल-कल ध्वनि में जैसे कोई राग बहता है| जहां हर लहर में जैसे कोई मंत्र छुपा रहता है, हर घाट पर ध्यान-सा लगा रहता है, नीले आकाश की छांव तले हरियाली की चादर ओढ़े पर्वत गौरवशाली लगते हैं, जहां हवा भी जपती है नाम और सूरज भी करता है आरती हरदम| लक्ष्मण झूले की डोर में बंधा प्राचीनता और आधुनिकता का संगम, संतों की वाणी, योगियों की साधना, यह सब हर मोड़ पर मिलते हैं| लगता है जैसे आत्माओं का समागम हो रहा हो,संगम हो रहा हो| ऋषिकेश की सुंदरता केवल दृश्य नहीं है, एक अद्भुत व अविस्मरणीय अनुभव है|

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इसी खुमारी में सारा दिन बीत गया, और फिर आई रात| ऐसा लगा कि कुछ अजीब-सी आवाज़ें सुनाई दे रही हैं| ऐसा लगा जैसे दो लोग आपस में बातें कर रहे हैं| ध्यान से सुना, तो पता चला कि ये आवाज़ें गंगा-तट से आ रही थीं| पास जाकर सुना, तो दोस्तों! ये तो गंगा जी के दो किनारे थे, जो आपस में बतिया रहे थे| मैं ध्यान से सुनने लगी| एक किनारा बड़ी ही बेबाकी से बोला, हे मित्र! गंगा के किनारे बने-बने मैं तो उकता गया हूँ | ये चंचल लहरें दिन-भर मुझे परेशान करती हैं| मैं शांति से यहां रहना चाहता हूँ , ये मुझे अशांत करती रहती हैं| बिना पूछे छूती रहती हैं| मैं नहीं चाहता, फिर भी ये भिगो देती हैं| दिन हो या रात, यूँ ही कितना शोर किया करती हैं, मानो इन्होंने कसम खा रखी हो कि सदियों तक यह मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगी | अपने साथी की बात पर दूसरा किनारा मुस्करा दिया और हँस कर जवाब देने लगा, हे मित्र! तुम कुछ ज्यादा ही सोचते हो| हम पत्थर के किनारे हैं, जड़ हैं, हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं है, जो हमारे जीवन में खुशियां लाए| हमें तो इन लहरों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि ये रोज़ हमसे मिलने चली आती हैं, सोचो, मिलने तो आती हैं, वरना हम यूँ ही अकेले-अकेले सूखे-सूखे से रह जाते| लहरें हैं, तभी तो हमारा जीवन गतिमान है| दूसरे किनारे में फिर बात संभाली और कहा, मत भूलो भाई, हमारा अस्तित्व गंगा की इन्हीं लहरों की वजह से है| किनारे कितनी भी टूटे-फूटे हों, लहरें फिर भी उनसे प्रेम करती हैं और गंगा के तट पर आने वाले कभी भी किनारों के खुरदुरेपन को नहीं देखते| वे प्रेम से हमारे समीप बैठते हैं, प्रतीक्षा करते हैं, लहरों की|

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उन किनारों को कभी देखा है मित्र, जिनके पास लहरें नहीं आतीं| उन उदास किनारों के पास कोई नहीं जाता.. ना रात को कोई दीपक जलाने जाता है, ना सुबह को सिर झुकाने| वे सब सदियों से लहरों की प्रतीक्षा में हैं, पर लहरों का सान्निध्य उन्हें नहीं मिलता| दूर-दूर तक सिर्फ़ सन्नाटा है, ना कोई जीव,ना कोई जीवन..तुम तो यूँ ही उदास रहते हो|

पहला किनारा कहाँ कम था अपनी बात रखने में, कहने लगा, तुम मानो या ना मानो मित्र, यह गंगा ज़रूर स्वर्ग से भी इसी चंचलता की वजह से निष्कासित की गई होगी| यहां धरती पर आकर भी यह हमें चैन लेने नहीं देती| आखिर क्यों बहती है यह

दूसरे किनारे ने फिर अपनी बात रखी, हो सकता है मित्र, तुम सही हो, लेकिन यह भी हो सकता है कि गंगा लोगों को तृप्त करने के लिए बहती हो, लोगों की अशुद्धियां और कलंक खुद में समेटना इसे रुचिकर लगता हो, सभी को अपने प्रेम का अमृत देना चाहती हो, यह भी वजह हो सकती है ना.. !

तभी एक सुरीली सी आवाज़ सुनाई दी, आवाज़ थी या कोकिला का स्वर, अरे जड़ किनारों! बहुत देर से मैं तुम लोगों की बातें सुन रही हूँ, मैं गंगा हूँ, गंगा माँ| गंगा सदियों से बहती आई है| स्वर्ग में भी शिव के शीश पर थी और इस धरती पर भी मुझे हमेशा सम्मान से स्वीकारा गया| मुझे मान और अपमान का कतई भय नहीं है| किसी को देने या किसी से कुछ पाने की भी मेरी कोई चाह नहीं है| मेरा कोई स्वार्थ नहीं है, मैं पवित्र, निश्छल, निःशब्द बहती रही हूँ , और बहती रहूँगी| मुझे छूकर लोग सौगंध दिखाएँ, दिए जलाएँ या अपनी अशुद्धियां मुझ में छोड़ जाएँ, मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता| मानो तो मैं गंगा माँ हूँ, ना मानो तो बहता पानी| हे किनारों, तुमसे टकरा-टकराकर मेरी लहरें बिखर-बिखर जाती हैं| तुम उनसे कुछ सीखो, जब तक तुम अपने झूठे अहम से अकड़े रहोगे, तब तक जड़ ही बने रहोगे| तुम्हारे कांधों पर मेरी लहरों ने कुछ पल यदि मैं विश्राम कर लिया, तो तुममें गुरूर आ गया, मेरे बहने पर ही सवाल उठाने लगे, मेरे बहने की गति पर ही प्रश्न करने लगे| यही तो दुर्भाग्य है, नदी और नारी, दोनों का, दोनों का खूब दोहन, खूब शोषण किया जाता है| यदि कोई नदी या नारी चुपचाप बहती चलती है, तो उसकी इस खामोशी पर भी संदेह किए जाते हैं और जो वह वाचाल हो जाए, तो फिर कहना ही क्या? वह सदियों से आरोपी बनाई जाती रही है| सदियों से दूसरों के लिए बहना, सहना और फिर भी प्रेम करते जाना, यह हम ही कर सकती हैं, एक नारी कर सकती है, या यह मैं कर सकती हूँ  क्योंकि मैं गंगा हूँ | पर तुम सोचो कि तुम कर लोगे? तो यह तुमसे ना हो पाएगा|

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क्यों ना हो पाएगा? क्योंकि तुम पत्थर हो, तुम में कोई संवेदन नहीं, संवेदना नहीं, स्पंदन नहीं, देखना, जब तुम टूटोगे एक दिन, मेरे प्रेम से भी तुम नहीं पिघल पाओगे, मेरे साथ नहीं बच पाओगे, पर मैं तुम्हारे लिए ठहरूंगी नहीं ,आगे चल दूंगी क्योंकि चलने का नाम ही जीवन है| साहस है यदि, तुम मुझ में डूब जाओ, पिघल जाओ, तरल बन जाओ| तुम सोच रहे होंगे, कि ऐसा क्यों कह रही हूँ तुमसे, क्योंकि मैं तरल हूँ, तभी मैं प्रेम कर पाती हूँ| तुम जड़ हो, इसलिए मुझ तक कभी पहुँच ही नहीं पाए| तुमने जीवन में झूमना, झुकना और लहराना तो सीखा ही नहीं| इसीलिए मुझे ही आना पड़ता है तुम तक, तुम तो कभी नहीं आए मेरे पास| आज तुम्हारी बातों से मेरा मन व्यथित हुआ

यही कहूँगी कि तुम यूँ ही पत्थर बनकर तरसते रहो, सदियों तक कोई लहर तुम्हें अपना ना समझे, तुम्हें छुए और दूर चली जाए और तुम आवाज़ भी ना दे सको| मैं गंगा हूँ, मैं असीम से आई हूँ, एक दिन असीम में ही मिल जाऊंगी मैं| मैं अपनी अनंत यात्रा पर हूँ, समझे, अब कभी ना कहना की गंगा बहती क्यों है? और मेरी एक सलाह भी है तुम्हें, क्यों ना तुम भी तरल बन जाओ? क्यों ना तुम भी बहना सीखो? क्यों ना तुम भी संवेदनशील हो जाओ? क्यों न तुम भी प्रेममय हो जाओ, बहो ना मेरे साथ, बहोगे न मेरे साथ.. !

माँ गंगा के प्रति हम सभी की भावनाएं जुड़ी हैं, इसलिए बहुत से अनुभव, किस्से-कहानियाँ भी होंगे| मुझे मैसेज बॉक्स में अपनी भावनाएं लिखकर प्रेषित कीजिए, भेजिएगा ज़रूर, मुझे इंतज़ार रहेगा.....और आप भी तो इंतजार करेंगे न ....अगले एपिसोड का...करेंगे न दोस्तों!

सुनते रहिए, हो सकता है, जाह्नवी की कहानी में आपके भी किस्से छिपे हों.....! मेरे चैनल को सब्सक्राइब कीजिए...मुझे सुनिए....औरों को सुनाइए....मिलती हूँ आपसे अगले एपिसोड के साथ...

नमस्कार दोस्तों!....वही प्रीत...वही किस्से-कहानियाँ  लिए.....आपकी मीत.... मैं, मीता गुप्ता...

END MUSIC


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