19.मत कर अभिमान रे बंदे!
मत कर अभिमान रे बंदे!
झूठी तेरी शान रे!
मत कर तू अभिमान,
तेरे जैसे लाखों आए, लाखों इस माटी ने खाए
मत कर अभिमान रे बंदे!
झूठी तेरी शान रे!
मत कर तू अभिमान,
पिछले दिनों ट्रेन के सफ़र के दौरान एक सज्जन से
मुलाकात हुई. उनसे थोड़ी बातचीत होने लगी| उन्होंने बताया कि वे उम्र का लंबा सफ़र तनहा
ही काट रहे हैं, पेशे से लेखक हैं| ऐसा जानकर मेरी बातों में रूचि बढ़ी| बात निकल
पड़ी, उनकी शिकायत थी कि प्रेम-संबंध तो बहुत बने, लेकिन वे किसी भी महिला पर भी
भरोसा नहीं कर पाए| उन्हें कोई भी अपने लायक नहीं लगी| कोई उनके
शब्दों से प्रेम करती थी, कोई उनके रंग-रूप पर फ़िदा थी, तो कोई उनकी शोहरत से
प्रभावित थी, उनसे प्रेम किसी ने नहीं किया| बहरहाल वे एक महिला के साथ कुछ वर्ष रहे
भी, पर फिर अलग हो गए| वे कहने लगे कि आप ही बताइए कैसे मैं इन चतुर-चालाक महिलाओं
पर भरोसा कर लेता और अपनी ज़िंदगी नरक बना लेता? फिर वे बोले, क्या आप मेरी इस दुख
भरी कहानी पर भरोसा करेंगी?
मैं मुस्करा दी और मैंने कहा कि देखिए, मैं भी एक
महिला हूँ और आप मेरे लिए अजनबी भी हैं, लेकिन मैं आपकी हर बात पर एतबार कर सकती
हूं, पर आप मुझे यह बताइए कि अपनी महिला मित्रों और प्रेमिकाओं के साथ रहकर भी उन
पर संदेह क्यों करते रहे? एतबार क्यों नहीं कर पाए? बोलिए! उनके पास इसका जवाब
नहीं था| ज़ाहिर सी बात थी कि उनका अभिमान, उनका ईगो, उनसे बहुत बड़ा था| अभिमान हमेशा
आपको अकेला कर देता है, प्रेम और विश्वास आपके चारों ओर बस्ती बसाते हैं, फूल खिलाते
हैं| वे सज्जन तो केवल एक उदाहरण हैं, आपके-हमारे आसपास बहुत से लोग हैं, जिन्हें अपने
ज्ञान का अभिमान है, किसी को रूप का, किसी को दौलत का या किसी को शोहरत का| क्या
है यह अभिमान? चलिए, आज
इसी पर बात करते हैं, दोस्तों!
दोस्तों! अभिमान हमें भीतर से डराता है, वह हमें
संवेदनशील नहीं होने देता, हमें पिघलने नहीं देता, हमें बरसाने नहीं देता| क्या
आपने कभी सोचा है क्यों? इसलिए कि संवेदनशील होने के लिए आपको सारे आवरण हटाने
होते हैं, बनावटीपन से दूर होना होता है और परत-दर-परत खुद को खोलना होता है,
लेकिन अभिमान, यह ऐसा कभी होने नहीं देता, वह हमें रोकता है, व्यक्त होने से,
खुलने से, इंसान होने से, किसी के सामने अपने आप को ज़ाहिर करने से| हम सतर्क होते
हैं, हमेशा उलझनों में घिरे रहते हैं, कोई देखने न ले, कोई जान न ले, कोई पहचान न
ले, कोई चीज़ मेरे भीतर प्रवेश न कर जाए, कोई भावना मुझे छू न जाए, कोई भीतर न आने पाए| कहीं ऐसा ना
हो कि कोई मेरे भीतर आकर मुझको नष्ट कर दे, मेरा वजूद खत्म कर दे, खुद को छुपाने का
हुनर आता है अभिमान को| अभिमानी हमेशा खतरों से घबराते हैं, वे जानते हैं कि किसी
को करीब आने देने से सौ मुसीबतें आएंगी| अभिमानी व्यक्ति हमेशा कमज़ोर
होता है, ना तो वह किसी के हृदय में प्रवेश करता है और ना ही किसी को अपने हृदय के
भीतर आने की अनुमति देता है| आपका क्या ख्याल है दोस्तों?
अभिमानी व्यक्ति हमेशा एक किले के भीतर बंदी की
तरह रहता है| इस किलेबंदी से उसे सुकून मिलता है, सुरक्षा का आभास होता है, वह
अपने आसपास के लोगों के साथ संवाद बंद कर देता है या फिर कम कर देता है| बड़ी ताज्जुब
की बात है, खास करके उन लोगों से, जिन्हें वह प्रेम करता है| जैसे ही उसे प्रेम के होने का
अहसास होने लगता है, वह तुरंत अपने किले में गुम हो जाता है, बड़े-बड़े दरवाज़ों पर
सांकल चढ़ाकर, वह इत्मिनान से बैठ जाता है| उसे लगता है अब बाहर की कोई भावना उसे
पर प्रहार नहीं कर पाएगी| यह अहंकार उसका कवच बन जाता है और वह बंदी| वह कारागृह
में कैद हो जाता है, कारागृह,
जिससे हम दिल कहते हैं|
मुश्किल उस पल आती है, जब उन दरवाज़ों की की-होल
से प्रेम झांकने लगता है, जी हां, दोस्तों! प्रेम तो झांक ही लेता है, चाहे कितने
भी पहरे हों, अंदर
प्रवेश कर ही जाता है| सूरज की किरण की तरह, हौले-से, चुपके-से और अपने पैर पसारने
लगता है, फूट पड़ता है हॉट-स्प्रिंग की तरह, सूरज की लाली की तरह, एक पतली रेखा के आकार में,
उस समय अभिमान घबराने लगता है, थर्राने लगता है, कुलबुलाने लगता है, अपनी सुरक्षा
में इस सेंध को देखकर वह परेशान होने लगता है| आखिर मेरी सुरक्षा में सेंध लगी, तो
लगी कैसे?
आपको ‘अभिमान’ फिल्म याद है? किस प्रकार अपने झूठे अभिमान के चलते नायक नायिका को परित्यक्त करने का
निर्णय ले लेता है, क्योंकि वह उसकी कला को, उसके टैलेंट को
स्वीकार नहीं कर पाटा, वह उसे कंट्रोल करना चाहता था, केवल अभिमान के कारण| अभिमान इतना भयभीत रहता है कि वह अपने मन रूपी सीता को, अपनी ईगो की जानकी को, लक्ष्मण-रेखा के अंदर ही रखना चाहता है ताकि उसका हरण ना होने पाए| अभिमान
हमेशा अकेला ही जीता है, खुद को छुपाने
का करतब जानता है
वह, खुद को ढकना वह अच्छी तरह जानता है| उसे प्रेम अपनी मृत्यु जैसे लगने लगती है इसलिए अहंकारी व्यक्ति कभी प्रेमी नहीं बन पाता| एक बड़ी सुंदर बात पढ़ी
थी कहीं, कि जीवन की गहराई में उतरना है, तो असुरक्षित अनुभव करने के लिए तैयार करना होगा, स्वयं को
असुरक्षित अनुभव करने के लिए तैयार रहना होगा, खतरे उठाने ही होंगे, अज्ञात में
जीना ही होगा और सुरक्षा जीवन नहीं होती| असुरक्षा में जब हम होते हैं, तो हम सदैव
चुनौतियों से जूझने के लिए तैयार रहते हैं लेकिन जब हम सुरक्षित होते हैं, तो हम
अपने ही दायरे में फंस कर नष्ट होते जाते हैं
अभिमानी होकर हम अपने सभी द्वार-दरवाज़े-खिड़कियां-रोशनदान झरोखे बंद कर लेते हैं, जिससे हवा-खुशबू-रोशनी-मलयानिल कभी प्रवेश नहीं कर पाती क्योंकि इनका प्रवेश निषेध हो जाता है|
मेरे ख्याल से दोस्तों! इसे तो हम जीना नहीं कहेंगे,
है न...? बल्कि कब्र में रहना कहेंगे| समंदर इसलिए खड़े होते हैं कि वह रहस्य छुपाते हैं,
लेकिन नदिया? नदिया के भीतर भाव बहते हैं, इसलिए
वह मीठी होती है,
उसमें मिठास होती है,
वह तृप्ति देती हैं, संतुष्ट करती है|
लेकिन समुद्र की एक बूंद भी तृप्त नहीं कर पाती| अभिमानी समंदर एक दिन खुद ही अपनी पीड़ा के साथ खुद में ही डूब जाता है, घुट-घुट के मरता है पल पल|
सब मेरे जैसे हैं और मैं सभी के जैसा,
यह भाव मन में रखना होगा, सबसे पहले हवा को खुशबू को महसूस करना होगा, उसे खुद के भीतर आने
देना होगा, उसके बाद प्रेम को भीतर प्रवेश देना होगा, दरवाज़े खोल कर रखने होंगे| देखना एक दिन प्रेम की ऊष्मा
अहंकार के ग्लेशियर को धीरे-धीरे पिघला
देगी, यकीनन पिघला देगी|
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