8 लव.. यू ज़िंदगी!
दोस्तों! यूं तो ज़िंदगी में अनेक लोग मिलते हैं, कुछ याद रह जाते हैं, कुछ को हम भूल जाते हैं, पर कुछ ऐसे भी होते हैं, जो हमेशा के लिए हम में समा जाते हैं, गाहे-बगाहे हम उन्हें याद रखते हैं, अक्सर उनका ज़िक्र करते हैं, और वे हमारी ज़िंदगी में, ज़िंदगी को देखने के नज़रिए में सकारात्मक, पॉज़िटिव बदलाव लाते हैं। तो दोस्तों, आज मैं बात कर रही हूं, एक ऐसी शख्सियत की, जिन्होंने सच में दुनिया को समझाया कि ज़िंदगी को प्यार कैसे किया जाता है। बात है अरुणिमा सिन्हा की, एक राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी....ट्रेन एक्सीडेंट में एक पैर गवां देने के बाद.....माउंट एवरेस्ट सम्मिट करने का संकल्प लेना...उसे पूरा करने की जद्दोजहद....क्यों?..आखिर क्यों? केवल इसलिए कि लव.. यू ज़िंदगी! यानी जीने की चाह...अदम्य साहस के साथ जिजीविषा...अहा! ज़िंदगी....!! आखिर यह ज़िंदगी है क्या?
खेल है, आनंद है, पहेली है, नदी है या झरना है या बस.. सांसों की डोर थामे उम्र के सफर पर बढ़ते जाना है?
ये साधना है या यातना?
सुख है या उलझाव? आज तक ज़िंदगी का अर्थ कोई भी, पूरी तरह, कभी समझ नहीं पाया है। आप अपनी ज़िंदगी किस तरह जीना चाहते हैं? यह तय करना जरूरी है। आखिरकार ज़िंदगी है आपकी। यकीनन, आप जवाब देंगे-ज़िंदगी को अच्छी तरह जीने की तमन्ना है। दरअसल, जीवन एक व्यवस्था है।,ऐसी व्यवस्था, जो जड़ नहीं चेतन है। स्थिर नहीं, गतिमान है। इसमें लगातार बदलाव भी होने हैं। जीवन की अर्थवत्ता हमारी जड़ों में हैं। जीवन के मंत्र ऋचाओं से लेकर संगीत के नाद तक समाहित हैं। हम इन्हें कई बार समझ लेते हैं, ग्रहण कर पाते हैं ,तो कहीं-कहीं भटक जाते हैं और जब-जब ऐसा होता है, ज़िंदगी की खूबसूरती गुमशुदा हो जाती है। हम केवल घर को ही देखते रहेंगे, तो बहुत पिछड़ जाएंगे और केवल बाहर को देखते रहेंगे , तो टूट जाएंगे। मकान की नींव देखे बगैर, कई मंजिलें बना लेना खतरनाक है, पर अगर नींव मजबूत है और फिर मंजिल नहीं बनाते तो अकर्मण्यता है। केवल अपना उपकार ही नहीं, परोपकार के लिए भी जीना है। अपने लिए ही नहीं ,दूसरों के लिए भी जीना है। यह हमारी ज़िम्मेदारी भी है और ऋण भी, जो हमें समाज और अपनी मातृभूमि को चुकाना है।
परशुराम ने यही बात भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र देते हुए कही थी कि वासुदेव कृष्ण, तुम बहुत माखन खा चुके, बहुत लीलाएं कर चुके, बहुत बांसुरी बजा चुके, अब वह करो, जिसके लिए तुम धरती पर आए हो। परशुराम के ये शब्द जीवन की अपेक्षा को न केवल उद्घाटित करते हैं, बल्कि जीवन की सच्चाइयों को परत-दर-परत खोलकर रख देते हैं। हम चिंतन के हर मोड़ पर कई भ्रम पाल लेते हैं। प्रतिक्षण और हर अवसर का महत्व जिसने भी नजरअंदाज किया, उसने उपलब्धि को दूर कर दिया। नियति एक बार एक ही मौका देती है। याद रखें, वर्तमान भविष्य से नहीं, अतीत से बनता है। सही कहा न दोस्तों!
कोई कहता है कि ज़िन्दगी एक आईना है,सच-झूठ का, ग़म-ख़ुशी का,नफरत-प्यार का, इंसान और इंसानियत का... क्या सचमुच?
कोई कहता है कि ज़िन्दगी एक कश्ती है, डूबती उबरती लहरों के ऊपर, इठलाती बलखाती-सी हवा से बातें करतीं।
कोई कहता है कि ज़िन्दगी एक फ़लसफ़ा है, सुख-दुख इसके दामन में खिलते-मुरझाते हैं, कभी हंसी-ठिठोली करते, कभी आँखें नम कर जाते, ना कोई तय पैमाना इसका ना कोई सिद्ध सूत्र इस प्रमेय का, ये तो उतना ही है जितना जिसने जाना, जितना जिसने पहचाना है, ना कोई इसका ओर है, ना कोई इसका छोर है, लगे ऐसे जैसे नीले अम्बर में उड़ती पतंग की डोर है I
चलिए, फिर कहानी पर आते हैं…. एक जंगल में शेर और कई तरह के जानवर रहते थे-भालू, चीता, गीदड़, बाघ, हिरण, हाथी आदि। एक बार उस जंगल में भयानक आग लग गई। चारों तरफ लपटें आसमान का छूने लगीं। हिरण, शेर, गीदड़ सभी जान बचा कर भागने लगे।
उसी जंगल में एक पेड़ पर चिड़िया रहती थी, भयानक आग को देखकर वह घबरायी नहीं। जल्दी से उड़कर पास के तालाब पर गई और चोंच में पानी भर-भरकर आग पर डालने लगी। चिड़िया को ऐसा करते देख कौआ बोला- “चिड़िया रानी, तुम इतनी छोटी हो और यह तुम भी जानती हो कि तुम्हारी चोंच भर पानी से यह आग नहीं बुझने वाली है, तो फिर क्यों बार बार प्रयास कर रही हो?” चिड़िया बोली - “मैं जानती हूं कि मेरे अकेले के प्रयासों से यह भयानक आग नहीं बुझने वाली है, पर जिस दिन इस जंगल का इतिहास लिखा जाएगा, उस दिन तेरा नाम देखने वालों में और मेरा नाम बुझाने वालों में लिखा जाएगा।”
यह कहानी मैंने बचपन में पढ़ी थी और आज भी इसका एक-एक शब्द दिल में बसा है। दोस्तों, हमारी ज़िंदगी चुनौतियों का सागर है। जब तक ज़िंदगी है, छोटी-बड़ी चुनौतियां आती ही रहेंगी। इसलिए हमें अपने ज़िंदगी की हर चुनौती को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए क्योंकि हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर हम ज़िंदगी-सागर में उठती-गिरती लहरों को देखकर डर गए, तो हम इसे पार कैसे करेंगे?
ज़िंदगी एक खूबसूरत एक सफ़र है। दोस्तों, अगर आपने कभी नाव में बैठकर यात्रा की होगी, तो आपने तीन तरह के लोगों को देखा होगा। एक तरह के लोग वे होते हैं, जो नदी या सागर में उठती लहरों को देखकर डर के मारे नाव में बैठते ही नहीं। दूसरी तरह के लोग वे होते हैं, जो डरते-डरते नाव में तो बैठ जाते हैं, परंतु वे जैसे-तैसे थरथराते हुए सफ़र को पूरा करते हैं, और तीसरे प्रकार के लोग वे होते हैं, जो उस सफ़र को इंजॉय करते हैं, जो उस सफ़र का मज़ा लेते हैं। सोचिए, आप किस श्रेणी में आते हैं ?
दोस्तों! बुरा वक्त कहकर नहीं आता। बुरे वक्त में भी हौसला बनाए रखिए। अब शायद आप यही सोचेंगे कि कहने और करने में बहुत फ़र्क होता है। जिस इंसान के ऊपर मुसीबत आती है, उसका दर्द सिर्फ़ वही जानता है, तो ठीक है, मैं इस बात को मानती हूं, लेकिन जब हमारे पास दो ऑप्शन हों, 'लड़ो या मरो' तो फिर हम लड़कर क्यों न मरें? हम लड़ने से पहले ही चुनौतियों के सामने घुटने क्यों टेकें? खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से इतना सक्षम क्यों न बनाएं कि हम विषम परिस्थितियों में भी न टूटें।
बेहतरी की कोई सीमा नहीं होती, दोस्तों। दुनिया का कोई भी इंसान अगर चाहे, तो वह खुद में अपनी इच्छा के अनुसार बदलाव करने में सक्षम होता है। अगर आपको लगता है कि आप कमज़ोर हैं,तो हानिकारक वस्तुओं का सेवन करने के बजाए पौष्टिक और शक्तिवर्धक खाद्य पदार्थों का सेवन कीजिए।
रोज़ाना कसरत कीजिए, योग कीजिए, दौड़ लगाइए। कुछ भी कीजिए लेकिन खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से मज़बूत बनाइए। अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा कीजिए क्योंकि ज़िंदगी की कठिन चुनौतियों का सामना करने के लिए आपका स्वस्थ और फ़िट रहना अति आवश्यक है।
सपने अपने भी होते हैं और सपने सच्चे भी होते हैं। अपने सपने को अपना बनाएं। उन्हें पूरा करने में जो आनंद आता है, वह अतुलनीय होता है । अपने सपनों को पूरा करने में लगन और परिश्रम से जुट जाइए, फिर कोई उन्हें पूरा होने से नहीं रोक सकता। ज़िंदगी में चाहे कितनी ही मुश्किल घड़ी क्यों न आ जाए,चाहे कितना भी बुरा वक्त क्यों ना आ जाए, कभी निराश न हों, कभी हिम्मत मत हारें और अगर हारना भी पड़े, तो बहादुरों की तरह लड़कर हारें, कायरों की तरह आत्महत्या नहीं।
उम्मीद की लौ सारे जहान को रोशन कर सकती है, दोस्तों! कभी उम्मीद का दामन न छोड़ें। और हां, एक बात हमेशा याद रखें, अगर आपके ज़िंदगी में कभी ऐसा वक्त आ जाए कि आपको कोई रास्ता दिखाई न दे, हर तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आए, तो जल्दीबाज़ी में कोई फ़ैसला न करें। थोड़ा ठहर जाएं, थोड़ा इंतज़ार करें, थोड़ा धैर्य रखें क्योंकि दुखों का कोहरा, चाहे कितना भी घना हो, सूरज की किरणों को निकालने से नहीं रोक सकता। आप बस हौसला रखें, अपने ईश्वर और अपने बड़ों पर भरोसा करें और स्वयं पर विश्वास बनाए रखें। उनके प्रति कृतज्ञ रहें। आप देखेंगे कि उम्मीद की एक किरण अंधेरे को चीरते हुए धीरे-धीरे आपकी तरफ़ बढ़ रही है। और सदैव याद रखिए कि आप हार मानने के लिए नहीं बने हैं, आप नई रार ठानने के लिए बने हैं, आप काल के कपाल पे लिखते और मिटाते हैं और नए गीत गाने के लिए बने हैं। मैंने सच कहा न दोस्तों!
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