2 हज़ारों मील लंबे रास्ते तुझको बुलाते
यायावरी का अपना ही मज़ा है। घूमने का शौक मुझे हमेशा से रहा, तो साल में अनेक बार देश के, विदेश के. नए-नए देशों के, नए-नए शहरों के, शहरों में बनी हुई संकरी या वृहद सड़कों के, उन सड़कों में छिपे इतिहास के, इतिहास के उन पन्नों में उन आवाजों के, जो वहां कभी बसती होंगी, से मैं अक्सर रूबरू होती रहती हूं। चाहे सर्दी हो, या गर्मी, बरसात हो या फिर कोई और मौसम, मेरी यात्राओं का दौर कभी रुकता नहीं। और छोटी यात्राएं अक्सर सड़कों पर होती हैं। इन सड़कों पर चलते हुए कभी-कभी मैं सोचती हूं कि यह सड़क आखिर जाती कहां होगी? यह अपने मुसाफ़िर को अपनी मंज़िल तक पहुंचाती है, पर क्या मंज़िल तक पहुंचने पर यह सड़क खत्म हो जाती है? या फिर किसी और मंज़िल की तलाश में निकल पड़ती है? इसमें तो न जाने कितने मोड़ हैं, कितनी नीचाइयां हैं, कितनी ही ऊंचाइयां है, कभी सर्पिणी की तरह बलखाती, कभी कालिदास की शकुंतला के केशों के घूंघर कर की तरह, कभी सपाट, कभी गड्ढ़ों से भरी, कहीं पथरीली, कहीं रेतीली, कहीं पगडंडी और कहीं एक्सप्रेस हाईवे, यही तो स्वरूप है ना इन सड़कों का... इतनी विभिन्नता लिए हुए ये सड़कें सभी मुसाफिरों को उनकी मंज़िल तक पहुंचाती है। यह बात अलग है कि सबकी मंज़िलें अलग-अलग होती हैं, राहें जुदा-जुदा होती हैं।
ऐसा सोचते सोचते एक दिन मुझे ऐसा लगा कि जब-जब मैं ऐसा सोचती हूं, तो कहीं कोई महीन-सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ती है, अब उसे आवाज़ को सुनने के लिए रुकना ही श्रेयस्कर था, सो रुक गई और ध्यान लगाकर सुनने लगी। आखिर यह कौन बोल रहा है?
तभी पतली-सी आवाज़ आई-मैं सड़क हूं।
अच्छा! तुम सड़क हो? यह तो मैं भी जानती हूं कि तुम सड़क हो, पर क्या तुम्हारा यही रूप-स्वरूप है जो मुझे दिखाई देता है, कहीं पथरीला, कहीं सपाट, कहीं ऊंचा, कहीं नीचा, कहीं इतने घूंघर, पास हो तो चौड़ी दिखती हो, और दूर हो तो महीन, और फिर कहीं विलुप्त होती हुई...बताओ न...आज बता ही डालो, सखी!
सड़क कुछ गंभीर होकर बोली, तुम भी तो जीवन के सफ़र में चलते-चलते कभी दुखों, कभी सुखों, कभी आशाओं, कभी आकांक्षाओं, कभी परेशानियों, कभी खुशियों से रूबरू होती हो ना! ठीक वैसे ही मैं हूं।
अच्छा!, फिर मैं सड़क से पूछ ही बैठी, चलो ठीक है, माना तुम्हारा जीवन और मेरा जीवन एक जैसा ,है पर यह तो बताओ जब तेज़ रफ्तार की गाड़ियां, लदे-फदे ट्रक, बड़ी-बड़ी और तरह-तरह की कारें चलती हैं, यह कहूं कि तुम्हें रौंदती हुई चली जाती हैं, तब तुम्हें कैसा लगता होगा?
सड़क बोली, ठीक वैसा ही लगता है बहन! जैसे किसी स्त्री की अस्मिता को उससे पूछे बिना तार-तार कर दिया जाए, उसकी आत्मा को छलनी कर दिया जाए, उसके रूप-स्वरूप को बिगाड़ दिया जाए, तहस-नहस कर दिया जाए, वो कितना भी साथ सिंगार करें, घूंघट से अपने को ढकने का प्रयास करे, पर तेज़ हवाओं के झोंके न केवल उसका घूंघट उघाड़ जाए, बल्कि उसके सलीके से बंधे हुए केशों को भी उड़ा-उड़ा कर उसके कांधों पर फैला जाए....बस ऐसा ही लगता है.....
मैं गहरी सोच में डूब गई....
फिर माहौल की नज़ाकत को समझते हुए पूछ बैठी....सखी, कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं ना, जो सफ़र पर निकाल कर रास्तों में हमसफ़र बना लेते हैं? चाहे उनके पांव कितने भी थके हों, उनके हौसले कितने भी पस्त हों, पर उनके जोश में कोई कमी नहीं आती, उनके हौसले बुलंद रहते हैं, वे नहीं जानते कि दूर से टिमटिमाता इस चिराग की रोशनी कब तक चलेगी? वे यह भी नहीं जानते कि मंज़िल मिलेगी या नहीं मिलेगी, दुनिया भी उन्हें टोकती है, रोकती है, पर वे झरने के वेग से आगे बढ़ते जाते हैं और अंत में.... अंत में उन्हें सागर मिल ही जाता है।
हे सखी! तुमने कहा कि तुम कहीं नहीं जातीं, पर मैं तो यह कहूंगी तुम न केवल शहरों और गांव के बीच की दूरियों को कम करने के लिए सेतु का काम करती हो, बल्कि तुम्हारे ही कारण तो गांव शहरों को अपनी गोदी में लेकर चलने के काबिल हो गए हैं, उन दो बिंदुओं को भी जोड़ती हो रेखाओं की तरह, जिन्हें कोई नहीं जानता। तुम हमारे सुख-दुख, चिंताओं, प्रेम, घृणा, रोज़गार-दिहाड़ी, इन सबके लिए गांवों से शहरों तक और एक शहर से दूसरे शहर तक जाती हो, कभी-कभी जर्जर होती इच्छाओं, आकांक्षाओं, उम्मीदों का बोझ भी उठाती हो, फिर भी उफ़्फ़ तक नहीं करतीं। तुम्हारे सीने में दफन है ना जाने कितने किस्से दुनिया को जीत लेने के, सफल-असफल अभियानों से लेकर रक्त और लाशों से पटे भीषण पलायनों के। जब सब डर भाग रहे थे, तुम वहीं की वहीं स्थिर थीं, वैसे ही चल रही थी तुम..... भाग दौड़ की इस कोलाहल में जब सुबह के समय तुम्हारे किनारे भीगी हुई हरी घास दिखाई देती है, तो ऐसा लगता है कि सारी यात्राएं पूरी हो गई हैं, यह तुम्हारा ही तो जलवा है, हे सखी! फिर तुम उदास क्यों हो?
इतनी बातें कहने के बाद, मैं कुछ हिचकिचाते हुए, कुछ अपने शब्दों पर संयम रखते हुए धीरे से बोली, सुनो सखी! एक बात और है, सोचती हूं पूछूं कि ना पूछूं, कहीं तुम बुरा तो नहीं मान जाओगी?
सड़क हंसकर बोली, मैंने क्या कभी किसी का बुरा माना है? न जाने कितने लोगों ने मुझे रौंदा, न जाने कितने लोगों ने मुझे, मेरी आत्मा को, मेरे शरीर को कष्ट दिया, मैं क्या कभी कुछ बोली हूं? क्या मैंने कभी कोई शिकायत की है? ऐसा सुनकर मैं बोली, हे सखी! क्या कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन भर सफ़र में रहते हैं? सड़क पर चलते हैं जीवनभर, जीवन के पथ पर तो चलते हैं, परंतु फिर भी कहीं पहुंचते नहीं।
सड़क मुस्काई और बोली, सही पूछा तुमने, इस दुनिया के ज़्यादातर लोग तो ऐसे ही हैं, जिन्हें अपने लक्ष्य का पता नहीं, कहां जाना है?, यह कभी सोचा नहीं। बस यूं ही सड़क के भोथरे पत्थरों के समान कभी यहां लुढ़के, कभी वहां लुढ़के, जहां पहुंच गए उसी को मंज़िल मान लिया।
यह सुनकर मैं सकते में आ गई, कुछ गंभीर हो गई, कुछ सोचने लगी।
मुझे गहरी सोच में डूबा देखकर सड़क फिर बोली, क्यों बहन दुख हुआ ना? सचमुच है तो दुखी ही बात, लेकिन क्या तुम उन लोगों के लिए दुखी हो, जिन्हें अपने ही वजूद का पता नहीं, अपनी की शक्ति का ज्ञान नहीं, अपने ही अस्तित्व का भान नहीं?
हां, यह बात बिल्कुल सच है कि मैं सभी मुसाफ़िरों को उनकी मंज़िलों तक पहुंचती हूं, सबकी मंज़िलें अलग-अलग होती हैं, पर उनकी मंजिलों तक उन्हें मैं ही पहुंचाती हूं। पर बहन एक बात और भी है, मैं जीवन भर चलती हूं, पर पहुंचती कहीं भी नहीं हूं। मेरी कोई मंज़िल नहीं, मेरा जीवन क्या ऐसा ही निरुद्देश्य जीवन बन कर रह जाएगा?
मैं आगे बढ़ चुकी थी, लेकिन मेरे बढ़ते हुए कदम फिर रुक गए और मैंने कहा, बहन! आओ मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन का एक नया रंग, एक नया इंद्रधनुष, एक नए क्षितिज दिखाती हूं। वह सफ़र, जिसे तुम पूरा करवाती हो, वह सफ़र प्रेमियों को मिलाता है, तीर्थ करवाता है, कहीं सीमा पर बैठे हुए सैनिकों को घर ले आता है, मां की गोद में बेटा इसीलिए तो सिर रखकर सो पाता है, क्योंकि तुम हो। सोचो, तुम्हारे बिना सड़क का यह सफ़र कैसा होता और सड़क का ही क्यों कहूं, ज़िंदगी का सफ़र भी कैसा होता? इसलिए बहन ना तो दुखी होना, ना ही रोना, तुम्हारा जीवन केवल उत्सर्ग के लिए है, परोपकार के लिए है, तुम जो करती हो, वह व्यष्टि से समष्टि की ओर बढ़ता तुम्हारा यह कदम है। और हां बहन! मैंने भी आज तुमसे यही सीखा है कि परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं अच्छा सखी! अब चलती हूं फिर मिलूंगी अगले सफ़र में,,,,,,
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