15 किसी की मुसकराहटों पे हो निसार
यह मशहूर पंक्तियां गीतकार शैलेंद्र से
ली गई हैं, जिनका मतलब हमारी भावनाओं से, संवेदनाओं से, हमारे मनुष्य होने या यूं कहूं, मनुष्य बने
रहने से गहराई से जुड़ा हुआ है।इसका तात्पर्य है कि किसी व्यक्ति का मुस्कराना यह
नहीं बताता कि वह वास्तव में खुश है, हो सकता है कि उसकी मुस्कराहट के पीछे कोई ऐसा
दर्द या दुःख छुपा हो, जिसे वह दुनिया के सामने व्यक्त नहीं कर पा रहा हो, पर हमें उसके
चहरे की मुस्कराहट को निरंतर बढ़ाना है, उसकी मुस्कराहट पर बलि-बलि जाना है|
तो दोस्तों!
आप समझ ही गए होंगे कि आज बात करेंगे मुस्कराहट की, मुस्कराहट जो सभी को प्यारी लगती है, और भोली-सी मुस्कान के सामने
कोई भी कठोर हृदय वाला
व्यक्ति झुक ही जाएगा| कुछ साल पहले मैंने एक खबर पढ़ी थी,
आज उसी के हवाले से बात शुरू करती हूँ| एक अभिनेता अचानक
अमेरिका के एक शहर के रिहैबिलिटेशन सेंटर में मिले और पिछले 10 सालों से उनका
कोई अता-पता नहीं था, लेकिन उनके सच्चे दोस्तों ने उन्हें ढूंढ ही निकाला और खर्च
करके उनका इलाज करवाया| सबसे पहले तो ऐसी दोस्ती को सलाम!
अगर कुछ सच्चे दोस्तों ने उनके साथ
ना दिया होता, तो स्थिति और भी भयानक हो सकती थी, कोई हंसता खिलाखिलाता-मुस्कुराता
व्यक्ति अचानक हमारे बीच से गायब हो जाता और हमें पता भी नहीं चलता| अपना देश
छोड़कर वह परदेस में रिहैबिलिटेशन सेंटर में पाया जाता है, उसके पास कोई अपना नहीं
होता है, उसके
दर्द को कोई नहीं समझता क्या रिहैबिलिटेशन सेंटर के डॉक्टर मनोवैज्ञानिक या
मनोचिकित्सक किसी के मन की अतल गहराइयों में जाकर दर्द की तलहटी को छू सकते हैं?
मान लिया कि वे हमारा इलाज करते हैं और मरीजों को ठीक भी करते हैं, किंतु ऐसे में सबसे
ज़्यादा ज़रूरत होती है, उन अपनों की, जो उसे अपनात्व दे सकें, उस भावना की,
जो केवल एक प्यार करने वाला ही दूसरे को दे सकता है| डॉक्टर अपने मरीज़ के इलाज पर
ध्यान देते हैं, उसी पर फोकस करते हैं, लेकिन वह प्यार, वह अपनापन, जो किसी के दिल
को छू ले, वह उनके लिए संभव नहीं होता| जिनके बारे में मैं बात कर रही हूं, उनको
आप सभी जानते हैं| एक बहुत प्यारा-सा मुस्कराता-सा चेहरा, जिस पर भोलापन और निश्छलता
छलकती थी| अरे! अभी भी याद नहीं आया, याद
कीजिए ‘अर्थ’ फिल्म का कैफ़ी आज़मी का लिखा वह गीत जिसे जगजीत सिंह ने बड़ी ही
सुंदरता से गाया था, किस पर
फिल्माया गया था? गीत
के बोल थे-
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो?
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो?
क्यों लोग अपने चेहरे पर झूठी
मुस्कान चिपकाए घूमते हैं? अंदर-अंदर रो लेना, बाहर-बाहर हंस लेना, क्या यह तरीका
ठीक है? अरे भाई! दुख है तो भाई, दुखी होलो, इसमें क्या शर्माना? इसमें क्या संकोच
करना? रोने का मन कर रहा है, तो रो लो जी भर के, क्या यह ज़रूरी है कि दुनिया
के सामने एक प्लास्टिक की हंसी चिपकाई जाए? दर्द है तो उसे महसूस किया जाए ना कि उसे पाला जाए, प्रेम है, तो उसे भी महसूस किया जाए, उसे अनदेखा ना किया जाए| हम प्रेम को भी छुपाते हैं और दर्द को भी| दुनिया से डर कर...
पर हम डरते क्यों है? अपने गम को छुपा कर क्यों मुस्काएं? हम
प्रकृति के विपरीत चलते हैं, हम दर्द में मुस्काते हैं और खुश होने पर भी खुशी को दबा लेते हैं| खुलकर हंसते
नहीं, खुलकर रोते भी नहीं,
हाय! लोग क्या कहेंगे? इसलिए मन की बात कभी भी मन से नहीं निकलती और
फिर एक दिन वह आंसू बनकर निकलती है और...और एक दिन वे आंसू जहर बन जाते हैं|
क्या आपका मन नहीं करता
पूछने का, कि भाई तुम इतना क्यों मुस्करा दिए,
कि दर्द अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया और तुम्हें इस सुंदर दुनिया से बेखबर कर दिया| नैनों अब मुस्कराना बंद कर
दिया| तुम्हारी मुस्कुराहट
वह निश्छल मुस्कान नहीं रही| यह उन तमाम लोगों के
लिए चेतावनी है कि सुनो, यदि तुमने सच्ची सहज मुस्कान अपने होठों पर नहीं खिलाई और गम छुपा कर मुस्काते रहे, तो यह प्लास्टिक की हंसी, एक दिन बीमारी बन जाएगी|
"प्लास्टिक की हंसी" वह हंसी हुई,
जो दिखावे के लिए या किसी दबाव के कारण होती है, जहाँ असली भावनाएँ ओट में, परदे में छिपी
होती हैं। जबकि सच्ची हंसी दिल की
गहराइयों से निकलती है—बिना किसी प्रतिबंध या नकाब के, जिसमें मन की
खुशी छलक-छलक जाती है।
हालांकि, यह भी सोचने
योग्य है कि कभी-कभी जो हंसी शुरुआत में नकली लगती है, समय के साथ
उसमें कुछ सच्चाई भी समा सकती है। कई बार जब हम किसी कठिन परिस्थिति में मजबूर
होकर हंसते हैं, तो वह
शुरुआत में सिर्फ़ एक तरह का ठट्ठा-मसखरा व्यवहार हो सकता है, लेकिन
धीरे-धीरे वही हंसी मानसिक शांति और
सामंजस्य का प्रतीक बन जाती है। इस तरह, हंसी का स्वरूप बहुत जटिल होता है—वह बाहरी
भावनाओं का ही नहीं, बल्कि
हमारे भीतरी संघर्षों और आत्म-विकास की कहानी भी बयां करती है।
सच्ची हंसी में वह सहजता और आत्मीयता
होती है, जो न सिर्फ चेहरे पर बल्कि पूरे अस्तित्व में झलकती है, जबकि प्लास्टिक
की हंसी में अक्सर वह गहराई नहीं होती। यह हमें याद दिलाती है कि जीवन में
वास्तविक आनंद का आना भी एक आंतरिक प्रक्रिया है, जिसे समाज या बाहरी परिस्थितियाँ
अक्सर नकाब में छुपा देती हैं।
क्या आपने कभी महसूस किया है कि
कभी-कभी हम सब के अंदर एक तरह का 'नकली' हंसने का दबाव होता है, जो कि वास्तव
में हमारे भीतर के संघर्ष या अनकहे दर्द को ढकने के लिए होता है? इस विषय को और
भी गहराई से समझने के लिए,
आप किस
बात को सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं—वास्तविक आनंद की वह सहजता, या फिर सामाजिक
अपेक्षाओं के अनुकूल हँसना?"सच्ची
हंसी और प्लास्टिक हंसी में मूल अंतर उनके जन्म और अनुभव के अंदर छिपे होते हैं।
सच्ची हंसी दिल से निकलती है। यह एक
स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जब हम खुशी, राहत या गहरे आनंद के क्षण अनुभव करते हैं। हमारी
आतंरिक अवस्था, भावनाओं
का उजागर होना और शरीर में उत्पन्न होने वाले हार्मोन्स—जैसे एंडोर्फिन—इस हंसी के
साथ जुड़ जाते हैं। यही वजह है कि सच्ची हंसी न केवल मन को ताज़गी और मानसिक शांति
देती है, बल्कि
दूसरों में भी एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। यह हंसी अनायास, बिना किसी दबाव
के, और
पूरी तरह से प्रामाणिक होती है। जबकि प्लास्टिक हंसी अक्सर सामाजिक परिस्थितियों
या दबाव के कारण उत्पन्न होती है। जब हम किसी अनौपचारिक या औपचारिक माहौल में, उस
मोमेंट का आनंद पूरी तरह से महसूस न कर सकें या अपने आंतरिक संघर्षों को छुपाने की
कोशिश करें, तो
हमारी हंसी में वह आत्मीयता और सहजता घट जाती है। यह दिखावे की हंसी होती है, जो कभी-कभी
परिस्थितियों को सहज दिखाने या किसी अनुचित स्थिति से उबरने के लिए उपयोग की जाती
है। इसमें वह स्वाभाविक गर्मजोशी नहीं होती जो सच्ची हंसी में होती है।
सच कहूं तो दोस्तों! सच्ची हंसी
हमारे दिल की गहराइयों से निकलती है और आत्मा के आनंद का प्रमाण होती है, जबकि प्लास्टिक
हंसी सामाजिक अपेक्षाओं या आंतरिक भय से प्रेरित एक प्रकार का नकाब होती है। यह
अंतर हमारे जीवन के अनुभवों और भावनात्मक खुलापन को परिलक्षित करता है। क्या आपके जीवन
में ऐसे क्षण आए हैं, जब आपने महसूस किया हो कि आपकी हंसी में सच्चाई के साथ-साथ आड़
में भी कुछ छिपा है? ऐसे
अनुभव हमें यह विचार करने पर मजबूर करते हैं कि वास्तविक आनंद की तलाश में हमें
अपने भावों को कब और कैसे व्यक्त करना चाहिए। हां, हंसी सामाजिक संबंधों पर गहरा असर
डालती है। इस
हंसी से निकलने वाली स्वाभाविक गर्मजोशी और आत्मीयता तुरंत ही लोगों के बीच एक
मजबूत बंधन स्थापित कर देती है। जब हम दोस्तों या परिवार के साथ दिल से हंसते हैं, तो यह एक
प्रकार का गैर-मौखिक संदेश होता है कि हम में सहानुभूति और समझदारी है, जो आपसी
संबंधों को और गहरा करती है। हंसी एक सार्वभौमिक भाषा है, जो लोगों के बीच की
दीवारों को गिरा सकती है और एक दूसरे के प्रति विश्वास और सामंजस्य की भावना को
बढ़ावा देती है। तो फिर
आइए न मेरे साथ, और किसी की सच्ची मुस्कराहटों पर निसार हो जाएं, जिससे किसी का
दर्द मिटा सकें, किसी
के वास्ते दिल में प्यार की गंगा बहा सकें, क्योंकि जीना इसी का तो नाम है, सही
कहा न दोस्तों!
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