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ये इश्क वाला लव...
दोस्तों!
न जाने इश्क को क्या-क्या कहा जाने लगा है? इश्क
सुना था, लव सुना था पर, ये
इश्क वाला लव क्या है? फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर का एक गीत
भर... जी नहीं। दरअसल फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सअप जैसे एप्स के साथ
युवाओं में प्यार की परिभाषाएं ही बदल रही हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि नई जनरेशन
प्यार में उठने वाले भावनाओं के ज्वार को लेकर ज्यादा प्रैक्टिकल है। पुरानी पीढ़ी
के मुकाबले ज्यादा सजग, दूरंदेशी और हर तरह की व्यावहारिकताओं
को समझने वाली। इसके बावजूद वो पुराना वाला इश्क तो हो ही रहा है, जिसे
यंगस्टर्स की भाषा में, फिल्मकार इश्क वाला लव कहते हैं।
अलग-अलग समय के साहित्य में रोमांस को तरह-तरह से पेश किया गया है। कहते हैं
साहित्य समाज का आईना होता है। साहित्यकारों, शायरों, सूफी
संतों, वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के नजरिए से इश्क को समझने की के लिए...
शायरों
और साहित्यकारों ने यूं बयां की मोहब्बत को, कैफी
आज़मी साहब कहते हैं कि
बस
एक झिझक है यही हाले-दिल सुनाने में,
कि
तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फसाने में।
बरस
पड़ी थी जो रुख से नकाब उठाने में,
वो
चांदनी है अभी तक गरीबखाने में ||
इसी
में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थी,
जो
वक्त बीत गया आजमाने में,
ये
कहकर टूट पड़ा शाखे-गुल से आखिरी फूल,
अब
और देर है कितनी बहार आने में...
इन
पंक्तियों में कैफी साहब ने प्रेयसी को लेकर आशिक की फिक्र, मोहब्बत
और तकलीफ को बेहद नज़ाकत के साथ पेश किया है। संवेदनशीलता तो देखिए कि आशिक अपना
हाल-ए-दिल बयां करने से भी डरता है कि कहीं इस जिक्र से उसके माशूका की बदनामी न
हो जाए। कितनी कोमलता, कितनी मुरव्वत, कितनी मुहब्बत, तितली
के पंखों सी रंग-बिरंगी है यह चाह| अगर पश्चिम की खिड़की में झांकें, तो विलियम शेक्सपीयर कहते सुनाई देते हैं कि मेरी
प्रेमिका की आंखें सूरज के जैसी नहीं हैं, मूंगा
भी उसके होठों से ज्यादा रंगीन है, बर्फ
भी उससे ज्यादा सफेद है और काले बादलों का रंग भी उसके बालों से गहरा है, गुलाब
भी उसके गालों से ज्यादा कोमल हैं, लेकिन
फिर भी उसकी सांसों की महक मुझे इन सबसे अच्छी लगती है। मैं उसके चेहरे को पढ़
सकता हूं, मुझे उसमें नज़र आता है समर्पण और प्यार, जिसके
लिए मैं बरसों से प्यासा था। मुझे उसकी आवाज़ में संगीत की मिठास लगती है। मैंने
कभी ईश्वर को नहीं देखा, लेकिन मैं अपनी प्रेमिका में उसके
दर्शन पाता हूं। वो जमीन पर पैर रखती है, तो ऐसा लगता है, मानो स्वर्ग से उतर रही
हो। हो सकता है कि यह सब मेरी कल्पना हो, लेकिन
मैं उससे प्रेम करता हूं यह सच्चाई है। बताइए,
ऐसा भी इश्क होता है कहीं| अब गुलज़ार साहब दिले-गुलज़ार करते दिखाई
देने लगते हैं, कि-
नज़्म
उलझी हुई है सीने में, मिसरे अटके हुए हैं होठों पर,
उड़ते-फिरते
हैं तितलियों की तरह, लफ्ज़ कागजों पर बैठते ही नहीं।
कब
से बैठा हुआ हूं मैं सादे कागज पर लिखकर नाम तिरा,
बस
तिरा नाम ही मुकम्मल है, इससे बेहतर भी नज़्म और क्या होगी?
यह
इश्क एक और इंतहा है।
प्यार..कहने को ढाई अक्षर, है न दोस्तों! मगर इज़हार करना हो, तो स्याही पूरी
न पड़े और पन्ने खत्म हो जाएं। सब कुछ कहने के बाद भी जाने क्यूं प्रेम का इज़हार
अभी भी अनकहा, अनबोला और अनलिखा ही जान पड़ता है। फिर
भी प्यार को ध्यान में रखकर रची गई कृतियां दिल के गिटार पर दीवानगी के सुर ज़रूर
छेड़ती हैं। कभी तकियों को भिगोती हैं, तो कभी किसी आपबीती से जोड़कर काफी कुछ
सोचने पर मजबूर कर देती है।
वैज्ञानिक
भी मानते हैं कि प्यार अंधा होता है। प्यार करने वाले को अपनी प्रेयसी की हर बात प्यारी लगती है, पर इश्क
का जादू सिर्फ चार मिनट में ही चल जाता है। इस आकर्षण में बड़ा योगदान हाव-भाव का
होता है, फिर बातचीत की गति और लहजा अपना असर डालता है| प्यार
में होता है अजब सा दीवानापन, असल
में जब व्यक्ति को किसी से प्यार होता है, तो उसके दिमाग में कुछ अलग ही किस्म की
हलचलें होती हैं। वह सामान्य से कुछ अलग हो जाता है। इसी को शायद दीवानापन कहते
हैं।
क्या यही दीवानापन इश्क वाला लव है? मुझे तो ऐसा लगता है कि इश्क वाला लव वह है जो हमें महकाता है, बहकाता है,फिर चाहे हमारा ‘वह’ हमारे पास हो, या दूर, इससे अंतर नहीं पड़ता, अंतर
क्यों नहीं पड़ता, अरे भाई, वह हममें जो समाया है| उस खास का ज़िक्र होना यानी इत्र की शीशी का खुलना और फिर इत्र की शीशी के खुलने पर चारों ओर खुशबू का बिखरना, क्या यही खुशबू इश्क वाला लव है? क्या इश्क वाले
लव का संबंध इत्र से है? ऐसे इत्र से है, ऐसी इत्र की खुशबू से है? क्या इस खुशबू के होने का कोई तर्क है? क्या कोई परमिट है इसके पास? क्यों आती है यह? कहां से आती है? कहां चली जाती है? कब तक रुकेगी? क्या इसकी कोई समय सीमा है? क्या इसकी कोई सरहद है? क्या इसका कोई पैमाना है?
क्या इसका कोई आशियाना है? कौन जाने..
यह
महसूस तो होती है, उठती हुई दिखती भी है, पर जब उठती है, तो आग लगा देती है, जब
बहती है, तो समंदर बहा देती है, बड़ी ही भली, बड़ी ही मासूम, बड़ी ही मीठी-सी...क्या इश्क वाला लव ऐसा ही है, जैसे सपेरे की बीन, जिस तरह सपेरे की बीन बजते ही घने जंगलों से सांप निकल आते हैं, बौराए से, बलखाए से, इतराए से, बेखबर से, क्या इश्क वाला लव उन्हें खींचता है? क्या इश्क वाले लव की खुशबू चंदन की खुशबू से भी तेज़ होती है? क्या इश्क वाले लव की पुकार कृष्ण की बंसी की तरह है, जिसने कभी किसी को नहीं पुकारा, उसे छलिए ने तो कभी किसी को आवाज़ भी नहीं दी, पर शायद बंसी की हर लहरी में इश्क वाले लव की खुशबू बसी होगी, उसमें एक पुकार होगी, एक सच्ची पुकार जो गोपियों को खींचकर अपनी ओर ले जाती होगी| वैसे मैंने यह भी देखा है कि इश्क वाला लव पत्थरों में हंसता है,
रेगिस्तान में चमकता है, समांदरों में तैरता है, चंद्रमा में छुपा-सा रहता है,
फूलों से झांकता है, रूह को सताता है, नींदों को उड़ा ले जाता है, आंखों से चलकता
है, होठों पर सिसकता है, भीड़ में भी हमें तनहा किया रहता है, पर रात के सियाह
सन्नाटों में हमें आवाज़ देता है, बेचैन करता है, जब हम सो जाते हैं, तो सपनों में
आकर हंसता है, जाग जाते हैं, तो रुलाता है, बाहर ढूंढेंगे, तो रो-रो कर भीतर बुलाएगा, और भीतर खोजेंगे, तो बाहर हंसती हुई आवाज
आएगी| क्या यही है इश्क वाला लव? क्या यह लव किसी किताब में लिखा है, ना..ना यह
किसी किताब में नहीं लिखा है, ना
ही वेदों- पुराणों में लिखा है कि इश्क वाला लव दरअसल है कहां? इसलिए इसे
मोटी-मोटी किताबों में मत खोजना, ना कोई मंत्र है, इसका ना कोई तंत्र है| इसका
असली ज्ञानी वही है कि जो इसे खोज ले अपने भीतर| कि उसके हिस्से का इश्क वाला लव
है कहां? ऐसा लव, जो दीवाना बना दे| पर दीवानेपन में सयानेपन की ज़रूरत नहीं| बस
पहचान की ज़रूरत है, उस खुशबू को पहचानने के लिए किसी ग्रंथ को पढ़ना नहीं पड़ता,
बस आंखें बंद करके अपने मन की बात सुननी होगी, मन समझते हैं न आप?
चंदन
के पेड़ आग में जलाने के लिए नहीं होते, वे
तो अनमोल खुशबू हैं, इश्क वाले लव जैसी खुशबू| जैसे हम इश्क वाले लव को मन में समा
लेते हैं, वैसे ही हम चंदन की खुशबू को मन में समा लेते हैं| इश्क वाले लव का
रिश्ता सच्चा रिश्ता होता है और सच्चे रिश्तों की खुशबू कभी नहीं जाती| वह आपका
पीछा कभी नहीं छोड़ती, पत्ती-पत्ती झड़ जाती है पौधों की, पंखुड़ी-पंखुड़ी झड जाती
है फूलों की, लेकिन खुशबू, यह इश्क वाली लव की खुशबू चुप नहीं होती, शांत नहीं बैठती,
बशर्ते आप उसे सुन सकें, महसूस कर सकें और कह सके यही है मेरा इश्क वाला लव|
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