Wednesday, 2 July 2025

EPISODE-4


EPISODE-4

INTRO MUSIC

दोइ नैना मत खाइयो, पिया मिलन की आस

नमस्कार दोस्तों! मैं मीता गुप्ताएक आवाज़एक दोस्तकिस्से- कहानियां सुनाने वाली आपकी मीतजी हाँ, आप सुन रहे हैं मेरे पॉडकास्ट, यूँ ही कोई मिल गया’ के दूसरे सीज़न का अगला एपिसोड ... जिसमें हैं, नए जज़्बातनए किस्सेऔर वही पुरानी यादें...उसी मखमली आवाज़ के साथ...जी हाँ दोस्तों, आज मैं बात करूंगी कुछ रूहानी, प्रेम की उस पराकाष्ठा की जहाँ विरहिणी कह उठती है-

कागा सब तन खाइयो मेरा चुन चुन खाइयो माँ स,

दो नैना मत खाइयो मोहे पिया मिलन की आस…।

MUSIC

आखिर क्या अर्थ है, क्या मायने हैं बाबा फ़रीद की इन पंक्तियों के, जिन्हें मैं बचपन से सुनती आई हूँ, पहले इनका अर्थ समझ ही नहीं आता था। कागा यानी ‘कौए’ से कोई क्यों ऐसा कहेगा?

कि चाहे मेरे तन को तुम नष्ट कर दो, पर मेरी दो आँखों को नष्ट मत करना, क्योकि उनमें पिया से मिलने की आस भरी हुई है| लेकिन जैसे-जैसे ज़िंदगी बहती गई और रंग दिखाती गई, इन पंक्तियों के अर्थ समझ आने लगे। बाबा फ़रीद जब ध्यान-साधना और भक्ति के चरम पर पहुँच गए थे, तो उन्होंने शरीर को आत्मा का वस्त्र मानकर त्याग और विरक्ति का मार्ग अपनाया था। किवदंती के अनुसार एक दिन बाबा फ़रीद ध्यान में बैठे थे और उन्हें एक गहन अनुभूति हुई| उन्होंने देखा कि जब वे मर जाएंगे, उनके निर्जीव शरीर को खाने कौवे आएँगे और उनका माँ स नोचेंगे। इस दृश्य ने उन्हें विचलित नहीं किया, बल्कि वे भीतर से और गहरे प्रेम में डूब गए।

पिया की राह तकते-तकते वियोगी स्त्री वृद्धा हो गई है, अब मौत की कगार पर खड़ी है और उस मुक़ाम पर वह कहती है किअरे कागा! अरे कौवे! इस शरीर की मुझे बहुत परवाह नहीं। अब मर तो मैं जाऊँगी ही; तुझे जहाँ-जहाँ से माँस नोचना होगा, नोच लेना, चुग-चुग कर खा लेना, पर आँखें छोड़ देना मेरी। नैनों पर चोंच मत मारना।’ क्यों? क्योंकि इनमें पिया मिलन की आस है, पिया मिलन की आस है, पिया मिलन का विश्वास है।

समझे दोस्तों?

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हमारी पूरी हस्ती में, देह में, सिर्फ़ वह अंग सबसे महत्वपूर्ण है, जो प्रियतम से जुड़ा हुआ हो, जिसमें प्रियतम बसे हुए हैं, बाक़ी सब निरर्थक है। बाक़ी सब चाहे नष्ट हो जाए, कोई बात नहीं, पर जो कुछ ऐसा है, जो जुड़ गया प्रीतम से, वो नष्ट नहीं होना चाहिए।

कई बार सोचती हूँ दोस्तों! बहुत कुछ हैं हम, और बहुत सी दिशाओं में भागते रहते हैं हम। हमारे सारे उपक्रमों में, हमारी सारी दिशाओं में, सिर्फ़ वो काम और वो दिशा क़ीमती है, जो उस पिया की ओर जाती है। चौबीस घंटे का दिन हैं न? बहुत कुछ किया दिन भर? वो सब कचरा था। उसमें से क़ीमती क्या था? बस वो, जिसकी दिशा प्रीतम की ओर जाती हो। और संत वो, जिसकी धड़कन भी आँख बन जाए, जो नख-शिख नैन हो जाए, जिसका रोंया-रोंया, जिसकी हर कोशिका सिर्फ़ प्रीतम की ओर देख रही हो, वो साँस ले रहा हो, तो किसके लिए? जी हां दोस्तों! उसी प्रीतम के लिए।

कभी-कभी सोचती हूँ दोस्तों! कि कागा का मतलब दुनिया के वे तमाम रिश्ते, जो स्वार्थ, ज़रुरत, ईर्ष्या और ठगी पर टिके हैं, जो सदैव आपसे कुछ ना कुछ लेने की बाट ही जोहते हैं, कभी बहिन  बनकर, कभी भाई बनकर, कभी पति, कभी पत्नी, कभी दोस्त या कभी संतान बनकर हमें ठगते हैं, क्या उनके मुखौटों के पीछे एक कागा ही होता है, जो अपनी नुकीली चोंच से हमारे वजूद को, हमारे अस्तित्व को, हमारे व्यक्तित्व को, हमारे स्व को, हमारे निज को खाता रहता है। हम लाख छुड़ाना चाहें खुद को, वो हमें नहीं छोड़ता। वो हमारी देह को, हमारे तन को खाता रहता है चुन- चुन कर, माँस का भक्षण करता रहता है। वो कई बार अलग-अलग नामों से, अलग-अलग रूपों में हमसे जुड़ता है और धीरे-धीरे हमें ख़तम किए जाता है। ये तो हुआ कागा पर......हम कौन हैं?

क्या सिर्फ़ देह?

सिर्फ़ भोगने की वस्तु

किसी की ज़रूरत का डिमाँ ड ड्राफ्ट?

और पिया कौन है?

क्या पिया वो परमात्मा है, जिससे मिलने की चाह में हम ज़िंदा हैं

MUSIC

कागा के द्वारा संपूर्ण रूप से तन को खाए जाने का भी हमें ग़म नहीं, बल्कि हम तो निवेदन करते हैं कि “दो नैना मत खाइयो, मोहे पिया मिलन की आस” --कौन है ये पिया? यक़ीनन वो परमात्मा ही होगा, जिसकी तलाश में ये दो नैना टकटकी लगाए हैं कि अब बस बहुत हुआ, आ भी जाओ और सांसों के बंधन से देह को मुक्त कर दो।

ये कागा उस विरहिणी का मालिक भी है, जिसको उसने बंदिनी बना रखा है। विरहिणी अपने प्रियतम की आस में आँखों को बचाए रखने की विनती करती है। कितना दर्द.....गहरा अर्थ है इन पंक्तियों में.....

कागा! तू जी भर कर इस भौतिक देह को खाले, चुन चुन कर तू इसका भोग कर ले, मगर दो नैना छोड़ देना क्योंकि इनको पिया मिलन की आस है और कागा क्या करता है?

वो अपना काम बखूबी करता है। अपनी ज़रूरत, अपने अवसर और अपने सुख के लिए वो माँ स का भक्षण किए जाता है…किए जाता है। उसे विरहिणी की आँखों में, या मन में झांकने की फुर्सत ही नहीं है। वो तो देह का सौदागर है...और सौदागरों ने हमेशा अपने लाभ देखे हैं, अपने ही स्वार्थ साधे हैं,किसी की आँखों में बहते दर्द, वे तो उसे दिखते ही नहीं....और ना ही दिखती है पराई पीर । इसीलिए वो विरहिणी कह उठी होगी कि “कागा सब तन खाइयो...”

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इसी लिए कहती हूँ  दोस्तों! अगर हमारा हाथ उठ रहा है, तो किसके लिए? दिल धड़क रहा है, तो किसके लिए? आहार ले रहे हैं, तो किसके लिए? गति भी कर रहे हैं, तो किसके लिए? उस पिया के लिए न...और पिया...पिया तो कहीं ओट में छिपा बैठा है...कहीं दूर...झील के उस पार...उस पार है पिया.....दूर झील के उस पार है पिया....पिया जो बुलाता तो है उस पार से,पर दिखता नहीं...दिखता नहीं, तो क्या हुआ...यकीनन वह है, है और विरहिणी की पीड़ा से वाकिफ़ भी है, तभी तो बसा है नैनों में, याद है न मीरा क्या कहती थीं, बसो मेरे नैनन में नंदलाल...|

जी हां दोस्तों! जिएँ तो ऐसे जिएँ, कि हर आस, हर प्यास , बस उसके दर पर जाकर ठहर जाए। वरना तो, समय काटने के बहाने और तरीक़े हज़ारों हैं।

आँखें बचाने लायक सिर्फ़ तब है, जब आप ‘उसको’ तलाशें। आपकी आँखों की छवि में उसका तस्सवुर, उसका नूर हो, कान बचाने लायक सिर्फ़ तब हैं, जब ‘उसको’ सुनें, बंसी के सजे सुर कानों में गुंजायमान हों। कंठ, ज़बान, होंठ बचाने लायक सिर्फ़ तब हैं जब आप ‘उसका’ ज़िक्र करें। पाँव बचाने लायक सिर्फ़ तब हैं, जब उसकी ओर बढ़ें, हाथ बचाने लायक तब हैं जब उसका नमन करें, उसकी इबादत में उठें, उसकी प्रार्थना के लिए जुड़ें और उसके बन्दों की मदद करने के लिए आगे आएं और सिर बचाने लायक सिर्फ़ तब है, जब उसके द्वार के सामने झुके।

इसलिए दोस्तों! यह समझना होगा कि शरीर तो नश्वर है और यह नष्ट हो जाएगा, लेकिन आत्मा और उसकी ईश्वर से मिलने की आकांक्षा अमर है। शरीर चाहे नष्ट हो जाए, लेकिन आत्मा की परमात्मा से मिलने की इच्छा हमेशा जीवित रहती है। यह एक विशेष निवेदन है कि "दोइ नैना मत खाइयो" अर्थात मेरे दोनों नेत्र मत खाना, क्योंकि इन नेत्रों में मेरे प्रिय से मिलने की आस बसी हुई है, परमात्मा से मिलने की अभिलाषा बसी हुई है, जो मेरे जीवन का अंतिम लक्ष्य है।

MUSIC

बातों के सिलसिले को यूँ  ही ख़त्म करने का मन नहीं करता, पर.....क्या करें.....? पिया तो अपरंपार है, उसकी बातें ही अपरंपार हैं, अपने पिया के किस्से-कहानियाँ मुझे मैसेज बॉक्स में लिखकर भेजिएगा ज़रूर, मुझे इंतज़ार रहेगा.....और आप भी तो इंतजार करेंगे न ....अगले एपिसोड का...करेंगे न दोस्तों!

सुनिएगा ज़रूर… हो सकता है,बाबा फ़रीद की विरहिणी की कहानी में आपके भी किस्से छिपे हों.....! मेरे चैनल को सब्सक्राइब कीजिए...मुझे सुनिए....औरों को सुनाइए....मिलती हूँ आपसे अगले एपिसोड के साथ...

नमस्कार दोस्तों!....वही प्रीत...वही किस्से-कहानियाँ  लिए.....आपकी मीत.... मैं, मीता गुप्ता...

END MUSIC

 


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