EPISODE-0
INTRODUCTION-
यूँ ही कोई मिल गया सीज़न-2 प्रस्तावना 01/01/26
एक विहंगम दृष्टि
INTRO MUSIC
नमस्कार दोस्तों! मैं मीता गुप्ता, एक आवाज़, एक दोस्त, किस्से- कहानियां सुनाने वाली आपकी मीत|
सबसे पहले आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ | नए साल में मैं
लेकर आ रही हूँ, अपने पॉडकास्ट ‘यूँ ही
कोई मिल गया’ का दूसरा सीज़न... जिसमें होंगे नए जज़्बात, नए
किस्से, और वही पुरानी यादें...उसी मखमली आवाज़ के साथ...|
दोस्तों! माँ भगवती के
आशीर्वाद स्वरुप अपनी वाचिक प्रस्तुति, अपने पॉडकास्ट 'यूँ ही कोई मिल गया' के दूसरे सीज़न को लेकर आप सभी के सामने उपस्थित हूँ| हर ज़िंदगी की कोई न कोई कहानी ज़रूर होती है, है न..
हमारे ज़हन में छिपी रहती है हमारी ज़िंदगी, और छिपी रहती हैं
हमारी यादें, मैं ले चलूँगी आपको एक ऐसी दुनिया में, जहां हर किसी की कहानी है, मेरे और आपके जज़बातों की,
और वह भी हिंदी में, हिंदी, जो हमारी अपनी भाषा है, हमारे सपनों की भाषा,
हमारे अपनों की भाषा...सच कहूँ तो कुछ कहानियां जीवन के साथ-साथ चलती हैं, तो कुछ यूँ ही मिल जाती
हैं| समय-सरिता के अजस्र प्रवाह में
बहता जीवन अनुभवों और अनुभूतियों की पोटली होता है| इन्हीं
अनुभवों और अनुभूतियों में से कुछ कहानियां, मैं अपने पॉडकास्ट 'यूँ ही कोई मिल गया' के दूसरे सीज़न में समेटने का प्रयास कर रही हूँ | आपके प्यार और आदर ने मुझे पॉडकास्ट का दूसरा सीज़न बनाने की ताकत दी, हिम्मत
दी, जज़्बा दिया| दरअसल मैं ऐसा मानती हूँ
कि प्रेम ही हमें ताकत देता है, हिम्मत देता है, जज़्बा देता है| और यह प्रेम हमारे खून में, हमारे लहू में रचा-बसा
होता है, यह हमारे लहू के साथ-साथ हमारी रगों में बहता है और
लहू का लाल रंग दरअसल प्रेम का ही लाल रंग है| मेरे शब्दों
के स्पर्श को, उसकी ऊष्मा को पाकर प्रेम का रंग कैसा हो जाता
है, यह जानना हो, तो पॉडकास्ट के इस
सुहाने सफर पर आपको मेरे कदमों से कदम मिलाकर चलना होगा|
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प्रकृति से मेरा अटूट रिश्ता रहा है| बचपन से ही असम की हसीन वादियों और ब्रह्मपुत्र के अथाह जल से मैंने प्रेरणा ली है,
युवावस्था में नैनीताल की हवाओं की नमी और सर्पाकार सड़कों को महसूस
किया है| इसलिए मेरी कहानियों में आपको पेड़-पौधे, झील-झरने, बर्फ-बारिश, समुद्र-नदियां,
बेल-वल्लरियाँ, पत्थर-पहाड़ इत्यादि प्रकृति
के रूपों में संवेदना मिलेगी और उसी संवेदना को मैं मानव-समाज और मानव-जीवन के
परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयास करूंगी|
दोस्तों! पॉडकास्ट है, तो आप ही से बातें कर
रही हूँ | बीच-बीच में आपसे कुछ प्रश्न भी करूंगी| ये प्रश्न न केवल आपको सोचने का अवसर देंगे, बल्कि
मेरे द्वारा कही गई मूल बात को नए आयामों से जोड़ने का भी काम करेंगे| मानव- मन से जुड़े सभी आयामों पर आपसे बातें भी करूंगी, लेकिन मेरे पॉडकास्ट का एक बड़ा हिस्सा नारी-जीवन की संवेदनाओं और वेदनाओं
को विशेष रूप से उजागर करेगा| हमारे समाज में नारी की दशा,
उसके सपनों, प्रार्थनाओं, कल्पनाओं, संवेदनाओं और इच्छाओं को उभारने जा रही हूँ
|
पहले सीज़न की भांति ही मैंने सभी एपिसोडस के शीर्षक रोचक रखने का
प्रयास किया है और अधिकतर शीर्षक किसी न किसी गीत या ग़ज़ल के मुखड़े हैं| आप उन गीतों या गज़लों को गुनगुनाते-गुनगुनाते भी पॉडकास्ट को सुन सकते हैं|
जब मैं छोटी थी, तो हिरोशिमा-नागासाकी पर बम गिराए जाने के बारे में
पढ़ती थी, सुनती थी, तब भी यह थोड़ा-थोड़ा समझ आता था कि इन ज़हरीले
रसायनों की वजह से वहां धरती बंजर हो गई है और अब वह हरी नहीं होती| तब से धरती के उस बंजर टुकड़े के लिए मेरा मन करुणा से भर-भर जाता था|
फिर ज़िंदगी ने समझाया कि बंजर सिर्फ़ धरती के टुकड़े ही नहीं होते,
मन की धरती के हिस्से भी बंजर हो जाते हैं| फिर
मैं सोचने लगती कि क्या कोई ऐसा रसायन भी है, जो इसे उर्वर
कर दे? अपने आप से पूछा था यह सवाल, तो जवाब हृदय की अतल गहराइयों से आया कि हां, एक
रसायन है, जो मन को मरने से बचा सकता है, और वह है-प्रेम रसायन| और इसी की बात करने जा रही
हूँ, अपने पॉडकास्ट में....|
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मैंने अपने पॉडकास्ट की भाषा को सरल और सहज रखा है| मैंने भाषा के साथ कोई प्रयोग नहीं किया, कोई सजावट
नहीं की, कोई कृत्रिम श्रृंगार नहीं किया| मैं भाषा को लेकर अत्यधिक सजग और सचेत भी नहीं रही, लेकिन
यह प्रयास ज़रूर किया कि भाषा सही भावों से संप्रेषित हो, भाषा
सहूलियत से बरती जाए, चाहे साहित्यिक हो या सरल, पर तरलता से भरपूर हो, बहती-सी रहे| हर एपीसोड में यही प्रयास किया कि मेरे शब्द आपके मन को छू लें, आपको संवेदना से भर दें, नम कर दें, और उर्वर भी कर दें|
कभी-कभी मैं ऐसा भी सोचती हूँ दोस्तों! कि प्रेम तो हम सभी के भीतर बहता है, फिर भी न जाने क्यों, हम इससे अंजान बने रहते हैं? चाहे
जड़ हो, चेतन हो, रेत हो, बूंद हो, किनारें हों, लहरें
हों, बारिश हो या मिट्टी हो, सभी तो
प्रेम को अपनी-अपनी तरह अभिव्यक्त करते हैं| वृक्ष पर लिपटी
लता, साहिल से सटकर बहता दरिया, मिट्टी
की सोंधी खुशबू और पत्तों पर जमी शबनम की बूंदें, ये सब भी
तो प्रेम के ही प्रतीक हैं| सदियों से केवल प्रेम ने इस
दुनिया को थाम रखा है, यह शाश्वत है, यह
कभी नष्ट नहीं होता| यही तो है, जो आसमान को झुकाता है,
पृथ्वी को महकाता है, कहीं पहाड़, तो कहीं
वृक्ष बन जाता है, कहीं बूंद बनकर बहता है, कहीं रेत बनकर सिमटता है, कहीं गीत बनकर बज उठता है, कहीं गीत, कहीं प्रीत, कहीं
हार और कहीं जीत बनकर ढलता रहा है, ढलता रहेगा| कृष्ण की
बाँसुरी ने किसी को आवाज़ देकर नहीं पुकारा, लेकिन यकीनन उस
बांसुरी में प्रेम ही सूर्य बनकर उदित हुआ होगा| राम के
पवित्र पैरों से कोई पत्थर क्या यूँ ही स्त्री बन गया होगा? शिव
की जटाओं में गंगा किस वजह से थमी होगी? जी हां! प्रेम दिखता
नहीं है, यकीनन महसूस होता है, यह नसों
में बहता है लहू बनकर, आसमानों से बरसता है बूंद बनकर,
आँखों से टपकता है अश्रु
बनकर, गालों पर चिपके, तो खारा लगता है,
होठों पर सजे, तो मीठा-सा, इस प्रेम को महसूस किया जाए, यही प्रयास है मेरा,
यही प्रयास है मेरे पॉडकास्ट 'यूँ ही कोई मिल
गया' के दूसरे सीज़न का|
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'यूँ ही कोई मिल गया' पॉडकास्ट के दूसरे सीज़न को, मैं
उन सब लोगों को समर्पित करती हूँ, जिन्हें मैं पसंद करती हूँ,
उन पलों को, उन रिश्तों को, उन नातों को, उन लंबी-लंबी-सी बातों को, उन छोटी-छोटी-सी मुलाकातों को, जिन्होंने मेरे मन
में प्रेम का मान बढ़ाया और मुझे प्रेम को पॉडकास्ट का विषय बनाने के लिए प्रेरित
किया|
जी हाँ! चलते-चलते यह भी कहना चाहती हूँ कि मैं आभारी हूँ इस माला के उस धागे की, जो अदृश्य है, पर हर मोती को जिसने सहेजा है,
जो दिखता नहीं, लेकिन उसके बिना यह माला कभी
बन ही नहीं सकती थी| वे सब लोग, जिनमें
मेरे बच्चे, अपूर्व, अक्षर और आशी
शामिल हैं, मेरे पति अंबरीश गुप्ता शामिल हैं और शामिल हैं ध्वनि
निर्देशक और वीडियो संपादक सुशांत शुक्ला| उम्र में भले ही ये
छोटे हों, किंतु इनकी खुशबू हर एपीसोड में है, इनका ज़िक्र उस इत्र की तरह है, जो हम सबके मन को
महकाता है, बहकाता है, कभी हँसाता है
और कभी-कभी रुलाता भी है| विश्वास कीजिए प्रेम की एक बूंद भी
यदि आपने ग्रहण कर ली, तो यह प्रेम आपके मन को कभी बंजर नहीं
होने देगा, यह वादा है मेरा|
तो आइए! इस धरती को प्रेममय बनाएँ, प्रेम में डूब जाएँ,
प्रेम की बातें करें, प्रेम से बातें करें और
प्रेम के सागर में गोते लगाएँ, इसमें अडूब डूबें, यानी डूबें नहीं, बस गोते लगाएँ, लहरों का आनंद लें|
तो चलिए, मेरे साथ चलिए, इंतज़ार किसका है? चलिए, उस इंद्रधनुषी जहां में मेरे साथ, जहां सिर्फ़ प्रेम ही प्रेम है| सुनिएगा ज़रूर… हो
सकता है, इस बार, कहानी आपकी हो! मेरे
चैनल को सब्सक्राइब कीजिए...मुझे सुनिए....औरों को सुनाइए....मिलती हूँ आपसे अगले
एपिसोड के साथ...
नमस्कार दोस्तों....वही प्रीत...वही किस्से-कहानियाँ लिए.....आपकी
मीत.... मैं, मीता गुप्ता...
END MUSIC
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