Wednesday, 2 July 2025

9 पल पल दिल के पास...

 

9 पल पल दिल के पास...

काफ़ी पुरानी बात है, मॉरीशस की धरती पर डोडो नामक एक बड़े पक्षी की प्रजाति निवास करती थी। तीन फीट लंबे 10 से 18 किलोग्राम के ये पक्षी बहुत भले थे और इंसानों के बहुत करीब आने की और करीब ही रहने की चाहत रखते थे। दोस्ताना रहना उनका स्वभाव था। लेकिन इंसान ने डोडो को कभी नहीं समझा। जब इंसान इस टापू पर पहुंचा और उसने 64 साल में ही डोडो को दुर्लभ होने के कगार पर पहुंचा दिया। 16 वीं और 17 वीं सदी के बीच डोडो का नामोनिशान मिट चुका था। इंसान की निर्ममता देखिए कि उसने उस भोले पक्षी का नाम "डोडो" यानी भोंदू रख दिया।

जब ये न उड़ सकने वाला डोडो इस दुनिया से हमेशा के लिए चला गया, तब भी अक्लमंद इंसान को कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन इसका ऐसा असर हुआ कि एक ख़ास प्रजाति के पेड़ों ने उगना कम कर दिया।

ईश्वर ने डोडो को उड़ने के लिए नहीं, इंसानों के करीब रहने के लिए ही बनाया था और वो इंसानों का प्रेम पाने के लिए ही धरती पर आया था। लेकिन हमारी तथाकथित अक्लमंदी, बेरुखी और अनदेखी से डोडो की संपूर्ण प्रजाति ही नष्ट हो गई और उसके विरह में, उसके वियोग में, एक ख़ास जाति के पेड़ों ने भी अपनी ज़िंदगी को नष्ट कर लिया। बात पहली नजर में साधारण-सी लगती है, लेकिन इसमे गहरा दर्शन छिपा हुआ है... और कुछ चुभते सवाल भी।

इस पूरे ब्रह्मांड की हर छोटी-बड़ी चीज़ एक दूसरे से कनेक्ट है, गहराई से जुडी हुई है। बाहर से अलग-अलग दिखने वाली चीज़ें भीतर से कहीं बहुत महीन तारों से जुडी होती हैं। छोटी-सी, सामान्य-सी, साधारण-सी चीज़ भी उस असाधारण से जुडी है....उस परम सत्ता का अंश है, हम सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हम सभी ये बात जानते तो हैं, पर यकीन करने से गुरेज़ करते हैं।

एक छोटी-सी तितली के पंख फड़फड़ाने से कहीं बहुत दूर किसी देश में बारिश हो सकती है....कौन-सी बूंद किस रेत के कण से जुडी हैं.....कौन-सी कली कब किसके लिए चटकेगी….कौन जाने?

कौन किसका हिस्सा है, कौन किस कारण से जुड़ता है,  कौन किस कारण से बिखरता है, टूटता है, किस कारण से मिटता है... कौन जाने? कोई नहीं जानता! फिर हम कैसे अपने साथ घटने वाली किसी भी घटना को नकार सकते हैं या सिरे से खारिज कर देते हैं? उससे भागने लगते हैं। बचने की कोशिश करने लगते हैं। हर छोटी से छोटी घटना अपने साथ वजह लेकर जन्मती है। हमारा कोई बस नहीं इस पर। फिर हम इसे क्यों अनदेखा करते है, क्यों सहज नहीं रहते। और जो सहज, सरल और निर्मल होते हैं, उन्हें हम डोडो या भौंदू समझ लेते हैं। है न दोस्तों?

क्या प्रेमिल हो जाना, प्रेमी बन जाना, दोस्ती का हाथ बढ़ा देना या किसी के करीब रहने की, संग की, साथ की चाह्त करना डोडो हो जाना है? क्या यह भोंदूपन की निशानी है?

क्या किसी को प्रेम करना हमारी विशेषता है, हमारा टेलेंट है, हमारा हुनर है? क्यों कर बैठते है हम प्रेम किसी एक से? क्या खोजते हैं हम उसमें? उसे या खुद को? क्या वो दुनिया में सबसे ज़्यादा खूबसूरत है इसलिए? प्रसिद्ध है इसलिए? किसी विशेष गुण के कारण? किसी ख़ास हुनर की वजह से? या हमने ही उसे पूज-पूज कर देवता बना दिया है। किसी घाट के गोल पत्थर को शालिग्राम कह कर पूज लिया है।

प्रेम करना हमारा स्वभाव होता है। आत्मा की अतल गहराइयों में कहीं बहुत गहरे में सोता होगा प्रेम, ना जाने कब से कितनी सदियों से, लेकिन कोई उसे अपनी नन्हीं सी कोमल छुअन से जगा जाता है। फिर क्या...फिर तो झरना फूट पड़ता है, प्रेम का। कोई आपकी उंगली पकड़ कर आपको आत्मा के भीतर बहुत गहरे में लिए जाता है। प्रेम नगर की सैर कराता है... आप दूसरे के माध्यम से खुद को खोजने चल पड़ते हैं। गोया वो टार्च जलाता है और हम अपना बिखरा सामान समेटने लगते हैं। जैसे यादें, सपने, अहसास इत्यादि। वो यक़ीनन ख़ास होता है, या हम उसे "सबसे खास" बना देते हैं।

सिर्फ़ देह से जुड़कर आप कई चूक कर जाते हैं, कुछ महान… कुछ रहस्यात्मक… क्योंकि आपकी गहराई के बारे में आपको पता ही नहीं होता, आप सिर्फ़ सतह पर जुड़ते हो, और दूसरे को भूल भी जाते हो। लेकिन जब कोई आपकी आत्मा को छूता है, तो आपको खुद की गहराई पता चलती है। किसी दूसरे के द्वारा ही आप अपने को जानते हो... अंतस में सचेत होते हो। गहन संबंध में ही, किसी के प्रेम में ही, आप खुद को खोज पाते हो। उस छुअन को आप सदियों तक याद रखते हो। हर प्रेम अनोखा होता है, उसकी प्यास अनोखी होती है, उसके अंदाज अनोखे, उसकी खोज अनोखी होती है। हम सब अपनी ही खोज में चलते जाते हैं दूर...कहीं बहुत दूर...

सच कहूं दोस्तों! हम खुद के लिए ही प्रेम करते हैं....खुद को खोजने के लिए। किसी को प्रेम करना हमारे हिस्से का प्रेम है। हमारा हिस्सा है और हमारा ही किस्सा भी। हमारी प्यास और हमारे अंदाज भी। इसमे ईर्ष्या, उम्मीद और पाने की बात ही नहीं। तो अब सवाल ये कि इस तरह से बेशर्त प्रेम करना क्या डोडो यानी भोंदू हो जाना है? कतई नहीं, हम अपने प्रेम की गोंद से रिश्तों को चिपकाते हैं अपने लिए। अपनी मर्ज़ी से, हम लोगों को पसंद करते हैं, प्यार करते हैं, ईमानदारी से कोई मिलावट नहीं इसमें।

अब आखिरी सवाल है कि जब सभी अपने प्रेम की खोज में हैं या खुद की खोज में हैं सभी को तलाश है, दरकार है, तो हर चेहरा उदास क्यों है?  क्यों प्यासे हैं लोग? जबकि सागर भी आस-पास ही है। फिर भी महसूस क्यों नहीं कर पाते प्रेम को, उसके आनंद को,  उसकी उर्जा को, उसकी अजस्र शक्ति को?

दरअसल हमने अपने ज्ञान का, बुद्धि का कुछ ज़्यादा ही विकास कर लिया है। हम बहुत अक्लमंद हो गए हैं, इसलिए छोटी बातों में अपना कीमती समय बर्बाद करना नहीं चाहते।

किसी ने क्या खूब कहा है "अक्ल के मदरसे से उठ, इश्क के मैकदे में आ"लेकिन हमारा अहम्, हमारा अभिमान और उसका कद बहुत बड़ा है, वहाँ से प्रेम, दोस्ती जैसी चीज़ें बहुत छोटी दिखती हैं। हमने अपनी अक्ल पे परदे भी लगा रखे हैं ताकि वो सुरक्षित रहे, कोई छोटी चीज़ आकर उसे नष्ट न कर दे। हम जानते हैं कि जिस दिन भी किसी दरार से या "की-होल" से प्रेम झांक गया, उसी दिन हमारी सारी अक्ल, सारी अकड़ धरी की धरी रह जाएगी, सारे ठाट-बाट फीके पड़ जायेगे, अहंकार के ये प्रासाद ढह जाएंगे, इसलिए हमने अक्ल पर मोटे-मोटे परदे डाल दिए। अब हम अपनी आँख, नाक, कान सब पर्दों में छिपा कर रखते हैं। हवा का कोई झोंका प्रेम-संदेश न ले आए, कोई प्रेम पुकार हमें विचलित न कर दे। कोई फूल न महक जाए, कोई सांस हमारे दिल को ना धड़का जाए। कितने सतर्क, कितने सावधान रहने लगे हैं हम... है न दोस्तों!

अब इतनी चौकसी, इतने पहरे, इतने परदों , इतने घूँघट के बाद किसी डोडो, किसी भौंदू की क्या मजाल कि वो तनिक भी ठहर पाए। वो तो आंखों में आंसू लिए, होठों पे बेबसी की मुस्कान लिए चुपचाप एक दिन चला ही जाएगा ।

कभी -कभी सोचती हूँ दोस्तों, जिस तरह से प्रेम के प्रतीक पक्षी, पेड़ और कई जीव, जिनमें अब मधुमक्खियों की बारी है, नष्ट हो रहे हैं, रूठ के जा रहे हैं बिना कुछ कहे, इनके पलायन करने का कारण आज तक कोई न खोज पाया है और न इन घटनाओं, इन नातों और संबंधों को ही कोई समझ पाया है। लेकिन एक दिन जब खोज पूरी होगी तब तक इंसान कितना नुकसान कर चुके होंगे इस धरती का, प्रेम का, इस नुकसान की भरपाई कौन कर सकेगा? कहीं ऐसा न हो जाए कि एक दिन बिना कुछ कहे, ख़ामोशी से हमारी अकलमंदी, हमारी अनदेखी, हमारे अनमनेपन, बेरुखी से आहत होकर …. प्रेम ही न कहीं चला जाए डोडो पक्षी की तरह दुखी होकर।

शायद, इंसान को उस दिन भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, प्रेम की करुण पुकार, उसका अलविदा कह जाना, क्या हम कभी सुन पाएंगे? हमारी अकल के पर्दों पे तो अब कोई दस्तक सुनाई ही नहीं देती।

लेकिन प्रेम, जो पल पल दिल के पास रहता है, के इस धरती से चले जाने के बाद फूल किसके लिए खिलेंगे? तितली किसके लिए उड़ेगी? आसमान में इंद्र-धनुष किसके लिए दिखेगा? आसमान से शबनम किसके लिए बरसेगी? न किसी पत्ती पे कोई ओस से प्रेम-पत्र लिखा जाएगा.....रात को चांद को कोई चकोर ताकेगा और न ही हिरण कस्तूरी की तलाश में बन-बन भटकेगा। फिर किसी चट्टान पे कोई घास नहीं उगेगी, न कोई लहर किनारों को आ-आ कर छुएगी।

याद रखिएगा दोस्तों, प्रेम बहुत स्वाभिमानी है और तुनक मिजाज़ भी। वो खुद कभी अकल के परदे पीछे नहीं छिपता, न कभी घूँघट के पट खोलता है। वो दरवाज़े पे दस्तक बन के दम तोड़ सकता है, लेकिन कभी कोई दरवाज़ा नहीं तोड़ता, वो परदों के घूँघट के बाहर सदियों तक इंतजार कर सकता है, लेकिन परदे नहीं खींचता। जब हमने लगाएं हैं ये अहम् और अभिमान के परदे, तो हटाने भी हमें ही होगे न, भला परदों के पीछे से कभी चाँद दिखता है क्या?

प्रेम छूटता है क्या...जो पल-पल दिल के पास रहता हो, वह केवल उत्सर्ग जानता है, और कुछ नहीं...हैं न दोस्तों!


No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...